8.(5.1) ‘‘चउवीसाए अरहंतेसु।’’(सोलहकारण भावना)
‘‘चउवीसाए अरहंतेसु।’’ (२४ तीर्थंकर) अमृतवर्षिणी टीका— …
‘‘चउवीसाए अरहंतेसु।’’ (२४ तीर्थंकर) अमृतवर्षिणी टीका— …
‘उणवीसाए णाहज्झाणेसु।’’ (उन्नीस नाथाध्ययन) अमृतवर्षिणी टीका— उन्नीस प्रकार के नाथाध्ययन हैं। ये धर्मकथाऐं हैं। अथवा—गुणस्थान, जीवसमास, पर्याप्ति, प्राण, संज्ञा और चौदह मार्गणा ये उन्नीस नाथाध्ययन हैं। (1) गुणस्थान इन १९ प्ररूपणाओं द्वारा अथवा इन १९ प्रकरणों का आश्रय लेकर यहाँ जीवद्रव्य का प्ररूपण किया जाता है। ‘‘जीवट्ठाण’’ नामक सिद्धांतशास्त्र में अशुद्ध जीव के १४ गुणस्थान,…
पडिक्कमामि भंते ! अमृतवर्षिणी टीका— श्रीगौतमस्वामी कहते हैं—‘‘एक्के भावे अणाचारे।’’ एक भाव अनाचार है। आचार का अर्थ विरति—व्रतों को ग्रहण करना है, उसका अभाव ‘अनाचार’ है। यह अनाचार चतुर्गति के सभी प्राणियों में स्वभाव से साधारणरूप से पाया ही जाता है। अथवा व्रतों का भंग हो जाना अनाचार है। ‘वेसु रायदोसेसु’। दो राग—द्वेष परिणाम हैं,…
पडिक्कमामि भंते ! (प्राकृत, पद्यानुवाद एवं अर्थ) अमृतवर्षिणी टीका— पडिक्कमामि भंते! एक्के भावे अणाचारे, वेसु रायदोसेसु, तीसु दंडेसु, तीसु गुत्तीसु, तीसु गारवेसु, चउसु कसाएसु, चउसु सण्णासु, पंचसु महव्वएसु, पंचसु समिदीसु, छसु जीवणिकाएसु, छसु आवासएसु, सत्तसु भएसु, अट्ठसु मएसु, णवसु बंभचेरगुत्तीसु, दसविहेसु समणधम्मेसु, एयारसविहेसु उवासयपडिमासु, वारसविहेसु भिक्खुपडिमासु, तेरसविहेसु किरियाट्ठाणेसु, चउदसविहेसु भूदगामेसु, पण्णरसविहेसु पमायठाणेसु, सोलसविहेसु पवयणेसु, सत्तारसविहेसु…
आओ समझें नवग्रह के बारे में चार गतियों में से देवगति का एक भेद है-ज्योतिर्वासीदेव। ये ज्योतिषी देव मध्यलोक के आकाशमण्डल में स्थित अपने-अपने विमानों में रहकर धरती के प्राणियों पर भी अपना प्रभाव डालते हैं। मनुष्य जिस समय माँ के गर्भ से उत्पन्न होता है, उसी समय उसकी जन्मतिथि के साथ-साथ समय, ग्रह, सूर्य,…
कुल देवता के संदर्भ में ‘‘कुल देवताओं की उपासना क्या मिथ्यात्व है ?, उस संदर्भ में दिगम्बर जैन आगम ग्रंथों के अनुसार ध्यान देना है- दिगम्बर जैन आगम ग्रंथों में चौबीस तीर्थंकर भगवन्तों के साथ-साथ उनके शासन देव-देवियों की प्रतिमाएँ बनाने का स्पष्ट उल्लेख मिलता है। तिलोयपण्णत्ति में गाथा नं. ९३४ से ९३९ तक में…
आओ जानें! तेरहद्वीप रचना में क्या-क्या है ? भगवान शांतिनाथ-कुंथुनाथ एवं अरहनाथ इन तीर्थंकर, चक्री एवं कामदेव पद से सुशोभित त्रय तीर्थंकरों की पावन जन्मस्थली हस्तिनापुर की पावन वसुन्धरा पर नवनिर्मित तेरहद्वीप रचना के बारे में आपको जिज्ञासा होगी कि यह क्या है ? कहाँ है ? और इसे धरती पर साकार करने का…
षट्खण्डागम-सिद्धान्तचिंतामणि टीका एक दिव्य उपहार (सोलहों ग्रंथों की टीका का संक्षिप्त सार) चिन्तामणि रत्न के समान फलदायी सिद्धान्त-चिंतामणिटीका- भव्यात्माओं! जैसे चिन्तामणि रत्न के बारे में सुना जाता है कि वह चिंतित फल को प्रदान करने वाला होता है, जिसे प्राप्त करके मानव भौतिक सुख-संपत्तिवान् बन जाता है। उसी प्रकार से जिन सिद्धान्त ग्रंथों का अध्ययन…
परमात्म प्रकाश-एक दृष्टि में आचार्य श्री योगीन्द्रदेव (१३ वीं शताब्दी में हुए) द्वारा रचित परमात्मप्रकाश ग्रन्थ वास्तव में एक आध्यात्मिक ग्रन्थ होने के साथ ही ज्ञानपिपासुओं के लिए विशेष स्वाध्याय योग्य ग्रन्थ है। उसी परमात्मप्रकाश के कुछ अंश यहां प्रस्तुत किये जा रहे हैं, सर्वप्रथम मंगलाचरण में आचार्यश्री कहते हैं— जे जाया झाणग्गियएँ कम्मकलंक डहेवि।…
सम्यक्त्व उत्पत्ति के कारण अनादिकाल से यह प्राणी संसार में मिथ्यात्व के कारण चतुर्गति के दुःख उठा रहा है। जब पुण्य योग से उसे सम्यग्दर्शन की प्राप्ति हो जाती है तब संसार सीमित हो जाता है। एक बार जीव को सम्यग्दर्शन होने के बाद वह अधिक से अधिक उनंचास (४९) भव में और कम से…