7. पंचमकाल में मुनियों का अस्तित्व
(7) पंचमकाल में मुनियों का अस्तित्व अहो! दु:षमकालान्तं श्रमणाशाचार्यिका इह। विहरन्ति निराबाधं कुर्युस्ते ताश्च मंगलम्।।१।। अहो! प्रसन्नता की बात यह है कि इस भारतक्षेत्र में दु:षमकाल के अंत तक मुनि और आर्यिकायें निराबाध विहार करते रहेंगे। वे मुनि और आर्यिकायें सदा मंगल करें। निर्गणरथ दिगम्बर मुनियों में जो जिनकल्पी और स्थविरकल्पी भेद हैं, उनका क्या…