नियम के निंदक बने भिखारी बगीचे में बसंतऋतु अपनी मधुरिमा से सबका मन आकर्षित कर रही है। अशोक की लाल-लाल कोंपल को खा-खाकर तोते क्रीड़ा कर रहे हैं। आम्र की ताजी मंजरियों को खा-खाकर कोयल अतीव मधुर शब्द बोल रही हैं। पक्षीगणों की कलरव ध्वनि से सारा बगीचा पुलकित हो रहा है। मानो वह मनोवती…
कैसे किया प्रतिज्ञा पालन सती मनोवती ने बल्लभपुर में सर्वत्र मनोवती और बुद्धिसेन के विवाह की चर्चा सेठ हेमदत्त के घर की सजावट किसी राजमहल से कम नहीं दिख रही है, कहीं पर मोतियों की झालरें लटक रही हैं, कहीं पर मखमल के चंदोये बंधे हैं। दरवाजों-दरवाजों पर सुन्दर-सुन्दर रत्नों से जड़े हुए तोरण बंधे…
सीता की अग्नि परीक्षा एवं दीक्षा सुग्रीव आदि का श्रीरामचन्द्र से सीता को अयोध्या लाने का निवेदन एवं सीता का अयोध्या आगमन श्री रामचन्द्र अपने सिंहासन पर आरूढ़ हैं। सुग्रीव, हनुमान, विभीषण आदि आकर नमस्कार कर निवेदन करते हैं- ‘‘प्रभो! सीता अन्य देश में स्थित है उसे यहाँ लाने की आज्ञा दीजिए।’’ रामचन्द्र गर्म निःश्वास…
राम-सीता एवं स्वजन मिलन रावण के वध से विभीषण हुए शोकविह्वल भाई को पड़ा देख विभीषण मोह और शोक से पीड़ित हो अपना वध करने के लिए छुरी को उठाता है कि इसी बीच उसे मूर्च्छा आ जाती है। सचेत हो पुनः आत्मघात करने के लिए तैयार होता है। तब श्रीराम रथ से उतरकर बड़ी…
सीता हरण एवं राम—रावण युद्ध लक्ष्मण द्वारा सूर्यहास खड्ग सिद्धि और शंबूक वध श्रीरामचन्द्र से आज्ञा लेकर दिशाओं की ओर दृष्टि डालते हुए महापराक्रमी लक्ष्मण अकेले ही उस दण्डक वन के समीप घूम रहे हैं। उसी समय वे विनयी पवन के द्वारा लाई गई दिव्य सुगंधि सूंघते हैं। उसे सूँघते ही वे विचार करने लगते…
सीता स्वयंवर एवं राम वनवास राजा जनक द्वारा सीता स्वयंवर की घोषणा कुछ क्षण विश्रांति करके राजा जनक निःशंक हो गोपुर में प्रवेश करते हैं। वहाँ जाकर देखते हैं कि चारों तरफ जहाँ-तहाँ पैâले हुए और फूले हुए रंग-बिरंगे पुष्प अपनी मधुर सुगंधि से मन को आकृष्ट कर रहे हैं। सुन्दर-सुन्दर बावड़ियों में स्वच्छ शीतल…
परमात्म प्रकाश-एक अध्ययन चार्य श्री योगीन्द्रदेव (१३ वीं शताब्दी में हुए) द्वारा रचित परमात्मप्रकाश ग्रन्थ वास्तव में एक आध्यात्मिक ग्रन्थ होने के साथ ही ज्ञानपिपासुओं के लिए विशेष स्वाध्याय योग्य ग्रन्थ है। उस परमात्मप्रकाश के मंगलाचरण में आचार्यश्री कहते हैं— जे जाया झाणग्गियएँ कम्मकलंक डहेवि। मिच्च णिरंजण णाणमय ते परमप्प णवेवि।।१।। अर्थात् जो भगवान ध्यानरूपी…
मोक्ष प्राप्ति में व्यवहारनय भी उपादेय है व्यवहार नयापेक्षा अध्यवसान आदि भाव जीव हैं ववहारस्स दरीसणमुवएसो वण्णिदो जिणवरेहिं। जीवा एदे सव्वे अज्झवसाणादओ भावा।।४६।। (समयसार) अर्थ-ये सब अध्यवसान आदि भाव हैं वे जीव हैं ऐसा जो श्री जिनेन्द्रदेव ने उपदेश दिया है वह व्यवहार नय का मत है। जो राग द्वेष आदि परिणाम हैं ये कर्म…