बारहभावना (श्री मंगतराय जी कृत)
बारहभावना (श्री मंगतराय जी कृत) -दोहा छंद- वंदूँ श्री अरहंतपद, वीतराग विज्ञान। वरणूँ बारह भावना, जगजीवन-हित जान।।१।। -विष्णुपद छंद- कहाँ गये चक्री जिन जीता, भरतखंड सारा। कहाँ गये वह राम-रु-लक्ष्मण, जिन रावण मारा।। कहाँ कृष्ण रुक्मिणि सतभामा, अरु संपति सगरी। कहाँ गये वह रंगमहल अरु, सुवरन की नगरी।।२।। नहीं रहे वह लोभी कौरव जूझ मरे…