जैन कला और पुरातत्व २.१ जैन परम्परा के अनुसार इस अवसर्पिणी काल में ह्रास होते-होते जब भोगभूमि का स्थान कर्मभूमि ने ले लिया तो भगवान् ऋषभदेव ने जनता के योगक्षेम के लिए पुरुषों की बहत्तर कलाओं और स्त्रियों के चौसठ गुणों को बतलाया। जैन अंग साहित्य के तेरहवें पूर्व में उनका विस्तृत वर्णन था, वह…
जैन संस्कृति की विशेषताएँ १.१ संस्कृति का अर्थ (Meaning of Culture)- ‘संस्कृति’ में सम् और कृति-इन दो शब्दों का योग है। शब्द-व्युत्पत्ति के आधार पर ‘सम् उपसर्ग’ के साथ ‘कृ’ धातु में, ‘क्तिन’ प्रत्यय लगने से ‘संस्कृति’ शब्द बना है, जिसका अर्थ है-‘सम्यक् कृति या चेष्टा।’ जो जीवन में सम्यक् आचार-विचार से सम्बद्ध है, जहाँ…
जैन साहित्य का संक्षिप्त इतिहास हिन्दी के प्रसिद्ध कवि मैथिलीशरणगुप्त ने एक कविता में लिखा है- अंधकार है वहाँ जहाँ आदित्य नहीं है। निर्बल है वह देश जहाँ साहित्य नहीं है।। अर्थ- किसी भी देश का गौरव वहाँ के साहित्य भण्डार से आंका जाता है यह बात कवि की पंक्तियों से स्पष्ट हो रही है।…