04.1 जैनागम
जैनागम १.१ ‘‘द्वादशांग श्रुतज्ञान क्या है ?’’ ‘‘ जिनेन्द्रदेव की दिव्यध्वनि को गणधरदेव धारण करते हैं। पुन: उसे द्वादशांगरूप से गूँथते हैं। अत: भगवान् की वाणी ही द्वादशांग श्रुतज्ञानरूप है। उस श्रुतज्ञान के दो भेद हैं— अंगबाह्य और अंगप्रविष्ट । इनमें से अंगप्रविष्ट के बारह भेद हैं और अंगबाह्य के चौदह। अंगप्रविष्ट के नाम आचार,…