10. ध्यान की आवश्यकता
ध्यान की आवश्यकता आर्तं रौद्रं च दुध्र्यानं, निर्मूल्य त्वत्प्रसादत:। धर्मध्यानं प्रपद्याहं, लप्स्ये नि:श्रेयसं क्रमात्।।११।। हे भगवान! आर्त-रौद्र इन दो दुध्र्यानों को आपके प्रसाद से निर्मूल करके मैं धर्मध्यान को प्राप्त करके क्रम से मोक्ष को प्राप्त करूँगा। ड एकाग्रचिन्तानिरोध होना अर्थात् किसी एक विषय पर मन का स्थिर हो जाना ध्यान है। यह ध्यान उत्तम…