27. समुच्चय जयमाला
समुच्चय जयमाला तर्ज-चलो मिल सब…………….. चलो तीरथ वंदन कर लो, निजात्मा को तीरथ कर लो, जिनवर पंचकल्याणक तीर्थों का अर्चन कर लो।।चलो.।। ऋषभ अजित अभिनंदन सुमती, अरु अनंत जिनवर। नगरि अयोध्या में जन्मे, जो तीरथ…
समुच्चय जयमाला तर्ज-चलो मिल सब…………….. चलो तीरथ वंदन कर लो, निजात्मा को तीरथ कर लो, जिनवर पंचकल्याणक तीर्थों का अर्चन कर लो।।चलो.।। ऋषभ अजित अभिनंदन सुमती, अरु अनंत जिनवर। नगरि अयोध्या में जन्मे, जो तीरथ…
(पूजा नं.-25) निर्वाणक्षेत्र पूजा -अथ स्थापना (गीता छंद)- चौबीस तीर्थंकर जिनेश्वर जहाँ जहाँ से शिव गये। गणधरगुरू अन्यान्य संख्यों साधु जहाँ से शिव गये।। वे सर्व थल पूजित हुए इन पूज्य के संसर्ग से। पूजूँ यहाँ आह्वान विधि से कर्म मेरे सब नसे।।१।। ॐ ह्रीं चतुर्विंशतितीर्थंकरगणधरसर्वसाधुनिर्वाणक्षेत्रसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। …
(पूजा नं.-24) भगवान महावीर निर्वाणभूमि –श्री पावापुरी सिद्धक्षेत्र पूजा -स्थापना (चौबोल छंद) महावीर प्रभु जिस धरती से, कर्मनाश कर मोक्ष गये। सिद्धशिला के स्वामी बनकर, सब कर्मों से छूट गये।। पावापुर निर्वाणभूमि, तीरथ का अर्चन करना है। आह्वानन स्थापन करने, जलमंदिर में चलना हैै।।१।। ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीमहावीरनिर्वाणभूमिपावापुरीसिद्धक्षेत्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। …
(पूजा नं.-23) श्री गिरनार सिद्धक्षेत्र पूजा -स्थापना (शंंभु छंद)- सिद्धक्षेत्र गिरनार गिरी, गुजरात प्रान्त का तीरथ है। प्रभु नेमिनाथ के मोक्षगमन से, पावन उसकी कीरत है।। तप, ज्ञान और निर्वाण तीन कल्याणक स्थल को वंदूँ। गिरनार तीर्थ की पूजन कर, मैं भी निज कर्मों को खंडूँ।। ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीनेमिनाथनिर्वाणभूमि गिरनारगिरिसिद्धक्षेत्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। …
(पूजा नं.-22) सम्मेदशिखर पूजन रचयित्री- गणिनीप्रमुख ज्ञानमती माताजी -अथ स्थापना- शंभु छन्द- गिरिवर सम्मेदशिखर पावन, श्रीसिद्धक्षेत्र मुनिगण वंदित। सब तीर्थंकर इस ही गिरि से, होते हैं मुक्तिवधू अधिपति।। मुनिगण असंख्य इस पर्वत से,…
(पूजा नं.-21) कैलाश पर्वत की पूजन तर्ज-आओ बच्चों………. चलो सभी मिल पूजन कर लें, गिरि कैलाश महान की। प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव के, प्रथम मोक्षस्थान…
(पूजा नं.-20) महावीर केवलज्ञान भूमि जृम्भिका तीर्थ पूजा -स्थापना- तीर्थंकर श्री महावीर प्रभू, जृंभिका ग्राम में तिष्ठे थे। ऋजुकूल नदि के तट पर, ध्यान अवस्था में वे बैठे थे।। तब कर्म घातिया नाश उन्होंने दिव्यज्ञान को प्रगट किया। उस केवलज्ञान तीर्थ अर्चन का भाव हृदय में उदित हुआ।।१।। ॐ ह्रीं तीर्थंकरमहावीरकेवलज्ञानकल्याणक पवित्र जृम्भिका तीर्थक्षेत्र! अत्र…
(पूजा नं.-19) अहिच्छत्र तीर्थ पूजा -स्थापना (शंभ् छंद)- तीर्थंकर प्रभु श्री पार्श्वनाथ, उपसर्गविजेता कहलाते। इसलिए पार्श्व प्रभु संकट मोचन, चिंतामणि हैं कहलाते।। उनकी उपसर्ग विजय एवं कैवल्यभूमि अहिच्छत्र जजूँ। तीर्थंकर पद की प्राप्ति हेतु, उनकी कल्याणकभूमि नमूँ।।१।। -दोहा- आह्वानन स्थापना, करूँ प्रथम हे नाथ! नंतर सन्निधिकरण कर, पूजूँ तीर्थ सनाथ।।२।। ॐ ह्रीं तीर्थंकर पार्श्वनाथ केवलज्ञानकल्याणक…
(पूजा नं.-18) प्रयाग तीर्थक्षेत्र पूजा -स्थापना (गीता छंद)- वृषभेश प्रभु की त्यागभूमि तीर्थधाम प्रयाग है। तीर्थंकरोें की शृंखला में वे प्रथम जिनराज हैं।। श्री नाभिनन्दन जगतवन्दन की तपोभूमी जजूँ। आह्वान स्थापन तथा सन्निधिकरण विधि से भजूँ।। ॐ ह्रीं तीर्थंकर श्री ऋषभदेव दीक्षाकल्याणक केवलज्ञानकल्याणक पवित्र प्रयाग तीर्थक्षेत्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। …
(पूजा नं.-17) कुण्डलपुर तीर्थ पूजा -स्थापना (चौबोल छन्द)- महावीर प्रभु जहां जन्म ले, सचमुच बने अजन्मा हैं। जिस धरती पर त्रिशला मां ने, एक मात्र सुत जनमा है।। उस बिहार की कुण्डलपुर, नगरी को वन्दन करना है। वन्दन कर उस तीरथ का, हर कण चन्दन ही समझना है।। -दोहा- आह्वानन स्थापना, सन्निधिकरण प्रधान। अष्टद्रव्य का…