18. सोलहकारण भावना
सूतक-पातक वर्णन बालक का जन्म होने पर जो घरवालों को और कुटुम्बियों को कुछ कालावधि के लिए देवपूजा, आहारदान आदि का कार्य वर्जित किया जाता है, उसी का नाम सूतक है एवं किसी के मरण के बाद जो अशौच होता है, उसे पातक संज्ञा है। यह सूतक-पातक आर्षग्रंथों से मान्य है। व्यवहार में जन्म-मरण दोनों…
षट्खण्डागम-सिद्धान्तचिंतामणि टीका एक दिव्य उपहार प्रस्तुति-प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका चन्दनामती चिन्तामणि रत्न के समान फलदायी सिद्धान्त-चिंतामणिटीका भव्यात्माओं! जैसे चिन्तामणि रत्न के बारे में सुना जाता है कि वह चिंतित फल को प्रदान करने वाला होता है, जिसे प्राप्त करके मानव भौतिक सुख-संपत्तिवान् बन जाता है। उसी प्रकार से जिन सिद्धान्त ग्रंथों का अध्ययन करके स्वाध्यायी जन मनवांछित…
शक्तितस्त्याग भावना परप्रीतिकरणातिसर्जनं त्याग:।।६।। पर की प्रीति के लिये अपनी वस्तु को देना त्याग है। भक्ति से दिया गया आहारदान उस दिन पात्र की प्रीति के लिये होता है। दिया गया अभयदान एक भव में दु:खों को दूर करता है किन्तु सम्यग्ज्ञान का दान देने से अनेक भवों के लाखों दु:खों से यह जीव पार…
आत्मा को परमात्मा बनाती है सोलहकारण भावनाएँ जैन धर्म में आत्मा को परमात्मा बनाने के लिए आचार्यों,उपाध्यायों एवं मुनियों ने तीर्थंकरों की वाणी का गूढ़ अध्ययन, मनन एवं चिन्तन करके प्रत्येक आत्मा को परमात्मा बनाने की सरलतम विधि बताई है। जिसे शुद्ध मन से जीवन में उतारने पर आपमें जन्म जन्मान्तर से जमी कालिमा को…
तप का महत्त्व बंधुओं! परमात्मा पद की प्राप्ति से पूर्व जिन—जिन सीढ़ियों का सहारा लेना पड़ता है उनमें से शक्तितस्तप की भावना अपने को तप की प्रेरणा दे रही है। संसारी प्राणी का परिभ्रमण कर्मों के कारण चल रहा है। संसार परिभ्रमण से छुटकारा पाने हेतु कर्मो का क्षय करना जरूरी है। कर्मों के क्षय…
१० -राम रावण युद्ध मेघ के समान दुंदुभि का शब्द सुनकर लक्ष्मण विराधित से पूछते हैं- ‘‘कहो, यह किसका शब्द है?’’ विराधित कहता है- ‘‘हे देव! वानर वंशियों का स्वामी सुग्रीव आपके पास आया हुआ है यह उसी की सेना का शब्द है।’’ इसी वार्तालाप के मध्य सुग्रीव राजभवन में प्रवेश करता है। लक्ष्मण आदि…
भवनवासी-उदधिकुमार देव (गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी से क्षुल्लक मोतीसागर जी की एक वार्ता क्षुल्लक मोतीसागर – वंदामि माताजी! श्री ज्ञानमती माताजी – बोधिलाभोऽस्तु! क्षुल्लक मोतीसागर – पूज्य माताजी! आज मैं पंचम भेद ‘उदधिकुमार’ के विषय में जानकारी चाहता हूँ। श्री ज्ञानमती माताजी – ठीक है पूछो! क्या पूछना चाहते हो? क्षुल्लक मोतीसागर – मेरा…
सप्तव्यसन सात नरक के द्वार हैं । (पद्मनन्दिपञ्चविंशतिका ग्रंथ के आधार से विशेषार्थ सहित) सात व्यसनों के नाम -अनुष्टुप्-द्यूतमांससुरावेश्याखेटचौर्यपराङ्गना: ।महापापानि सप्तेति व्यसनानि त्यजेद्बुध:।।१६।। जुआ खेलना, मांस खाना, मदिरा पीना, वेश्यासेवन करना, शिकार खेलना, चोरी करना और परस्त्री सेवन करना ये सातों व्यसन महापाप को उत्पन्न करने वाले हैं अतएव बुद्धिमान पुरुष इनका त्याग अवश्य कर…
ज्ञानमार्गणा (बारहवाँ अधिकार) ज्ञान का स्वरूप जाणइ तिकालविसए, दव्वगुणे पज्जए य बहुभेदे। पच्चक्खं च परोक्खं, अणेण णाणं ति णं बेंति।।९५।। जानाति त्रिकालविषयान् द्रव्यगुणान् पर्यायांश्च बहुभेदान्। प्रत्यक्ष च परोक्षमनेन ज्ञानमिति इदं ब्रुवन्ति।।९५।। अर्थ—जिसके द्वारा जीव त्रिकालविषयक भूत, भविष्यत्, वर्तमान काल सम्बंधी समस्त द्रव्य और उनके गुण तथा उनकी अनेक प्रकार की पर्यायों को जाने…