उत्तम आिंकचन्य धर्म
उत्तम आिंकचन्य धर्म आकिंवणु भावहु अप्पउ ज्झावहु, देहहु भिण्णउ णाणमउ। णिरूवम गय—वण्णउ, सुह—संपण्णउ परम अतिंदिय विगयभउ।। आिंकचणु वउ संगह—णिवित्ति, आिंकचणु वउ सुहझाण—सत्ति। आिंकचणु वउ वियलिय—ममत्ति, आिंकचणु रयण—त्तय—पवित्ति।। आिंकचणु आउंचियइ चित्तु पसरंतउ इंदिय—वणि विचित्तु। आिंकचणु देहहु णेह चत्तु, आिंकचणु जं भव—सुह विरत्तु।। तिणमित्तु परिग्गहु जत्थ णत्थि, आिंकचणु सो णियमेण अत्थि। अप्पापर जत्थ विचार—सत्ति, पयडिज्जइ जिंह परमेट्ठि—भत्ति।।…