गृहस्थ धर्म जो स्त्री, पुत्र, धन आदि के मोह से ग्रसित हैं वे सागार या गृहस्थ कहलाते है। वे यदि सर्वत्याग रूप मुनिमार्ग में प्रीति रखने वाले हैं और कारणवश उस पद को ग्रहण नहीं कर पाते हैं तभी वे श्रावक धर्म को ग्रहण करने के अधिकारी होते हैं। अन्यथा यदि मुनि धर्म मेंं उनकी…
नंदिमित्र बलभद्र एवं श्रीदत्त नारायण भगवान मल्लिनाथ के तीर्थ में नंदिमित्र नाम के सातवें बलभद्र एवं श्रीदत्त नाम के सातवें नारायण हुए। इनके तीसरे भव पूर्व का चरित्र लिखा जाता है-अयोध्या के राजा के दो पुत्र थे। ये दोनों पिता को प्रिय नहीं थे अत: राजा ने इन दोनों को छोड़कर अपने छोटे भाई को…
द्रव्य – गुण – पर्यायविषयक विवेचन पू० माता जी ने द्रव्य के लक्षण सत् (उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यात्मक) एवं उनके प्रकट स्वरूप द्रव्य – गुण – पर्याय का विवेचन अति सुन्दर एवं स्पश्ट रूप में करके नियमसार के हार्द को खोल दिया है। विशय विस्तार के भय से यहाँ हम मात्र उनकी कतिपय पक्तियाँ प्रस्तुत करेंगे जिससे उनकी…
वेदमार्गणा (दशम अधिकार) वेद का स्वरूप पुरिसिच्छिसंढवेदोदयेण पुरिसिच्छिसंढओ भावे। णामोदयेण दव्वे, पाएण समा कहिं विसमा।।८३।। पुरुषस्त्रीषण्ढवेदोदयेन पुरुषस्त्रीषण्ढा: भावे। नामोदयेन द्रव्ये प्रायेण समा: क्वचिद् विषमा:।।८३।। अर्थ—पुरुष, स्त्री और नपुंसक वेदकर्म के उदय से भावपुरुष, भावस्त्री, भावनपुंसक होता है और नामकर्म के उदय से द्रव्यपुरुष, द्रव्यस्त्री, द्रव्यनपुंसक होता है। सो यह भाव वेद और द्रव्य वेद प्राय:…
भगवान ऋषभदेव के पुत्र भगवान बाहुबली स्वामी थे इन्होंने दीक्षा लेकर एक वर्ष तक के लिए प्रतिमायोग धारण किया ‘उनके तप के प्रभाव से सभी ऋद्धि प्रगट हो गई थी।
भगवान बाहुबली को कोई शल्य नहीं थी। मात्र इतना विकल्प अवश्य था कि भरत को मेरे द्वारा संक्लेश हो गया था सो भरत के पूजा करते ही वह दूर हो गया।
संसार में समस्त प्राणियों के लिए धर्म मंगल स्वरूप है ऐसा जिनेन्द्रदेव ने कहा है। वह धर्म अहिंसा, संयम और तपरूप भी है, जो व्यक्ति अपने मन में उस धर्म को धारण करते हैं उसे देवता भी प्रणाम करते हैं