समवसरण स्तूप स्तोत्र
समवसरण स्तूप स्तोत्र मंगलाचरण अर्हन्तो मंगलं कुर्यु:, सिद्धा: कुर्युश्च मंगलम्। तेषां सर्वाणि विंबानि, कुर्वन्तु मम मंगलम्।।१।। तीर्थकृत्सन्निधौ भान्ति, नवस्तूपा: सुरैर्नुता:। तत्रस्था जिनसिद्धार्चा:, ते ताश्च सन्तु मंगलम्।।२।। -नरेन्द्र छंद- समवसरण में सप्तमभूमि, भवनभूमि मुनि कहते। उनमें भवन बने अति ऊँचे देव देवि वहँ रहते।। चारों गलियों में नव-नव, स्तूप बने मणियों के। उनमें रत्नमयी जिनप्रतिमा, वंदूँ…