श्रावक को अपने जीवन में मूलगुण को अवश्य धारण करना चाहिए,क्योंकि अष्ट मूलगुणों को धारण करके ही वास्तव में श्रावकसंज्ञा सार्थक होती है |
पांच उदम्बरफलों का एवं तीन मकार अर्थात् मंद्य, मांस,मधु का त्याग ये श्रावक के अष्ट मूलगुण कहलाते हैं |
दर्शनविशुद्धि भावना दर्शनविशुद्धि भावना जिनोपदिष्टे निर्ग्रन्थे मोक्षवर्त्मनि रुचि: नि:शंकितत्वाद्यष्टांगा दर्शनविशुद्धि:।।१।। जिनेन्द्र देव के द्वारा उपदिष्ट निर्ग्रंथ दिगम्बर मोक्षमार्ग में रुचि होना और नि:शंकित आदि आठ अंगों का पालन करना दर्शनविशुद्धि है। इहलोक, परलोक, व्याधि, मरण, अगुप्ति, अत्राण और आकस्मिक इन सात प्रकार के भयों से रहित होना नि:शंकित है अथवा अर्हंत देव के द्वारा कथित…
पर्याप्ति प्रकरण ( तृतीय अधिकार ) पर्याप्ति का लक्षण जह पुण्णापुण्णाइं, गिह-घड-वत्थादियाइं दव्वाइं। तह पुण्णिदरा जीवा, पज्जत्तिदरा मुणेयव्वा।।३४।। यथा पूर्णापूर्णानि गृहघटवस्त्रादिकानि द्रव्याणि। तथा पूर्णतरा: जीवा: पर्याप्तेतरा: मन्तव्या:।।३४।। अर्थ—जिस प्रकार घर, घट, वस्त्र आदिक अचेतन द्रव्य पूर्ण और अपूर्ण दोनों प्रकार के होते हैं उसी प्रकार पर्याप्त और अपर्याप्त नामकर्म के उदय से युक्त जीव भी…
षट्खंडागम आदि ग्रन्थ पूर्ण प्रमाण हैं एत्तो उवरि पयदं परूवेमो- लोहाइरिये सग्गलोगं गदे आयार-दिवायरो अत्थमिओ। एवं बारससु दिणयरेसु भरहखेत्तम्मि अत्थमिएसु सेसाइरिया सव्वेसिमंग-पुवाणमेगदेसभूद-पेज्जदोस-महाकम्मपयडिपाहुडादीणं धारया जादा। एवं पमाणीभूदमहरिसिपणालेण आगंतूण महाकम्मपयडिपाहुडामियजलपवाहो धरसेणभडारयं संपत्तो। तेण वि गिरिणयरचंदगुहाए—भूदबलि-पुप्फदंताणं महाकम्मपयडिपाहुडं सयलं समप्पिदं। तदो भूदबलिभडारएण सुदणईपवाहवोच्छेदभीएण भवियलोगाणुग्गहट्ठं महाकम्मपयडिपाहुडमुवसंहरिऊण छखंडाणि कयाणि। तदो तिकालगोयरासेसपयत्थ विसयपच्चक्खाणंत केवलणाणप्पभावादो पमाणीभूदआइरियपणालेणागदत्तादो दिट्ठिट्ठविरोहाभावादो पमाणमेसो गंथो। तम्हा मोक्खवंâखिणा भवियलोएण अब्भसेयव्वो।…
सुलोचना ने जिनमंदिर व जिनप्रतिमाएँ बनवाई कारयन्ती जिनेन्द्रार्चाश्चित्रा मणिमयीर्बहूः। तासां हिरण्मयान्येव विश्वोपकरणान्यपि।।१७३।। तत्प्रतिष्ठाभिषेकान्ते महापूजाः प्रकुर्वती। मुहुः स्तुतिभिरथ्र्याभिः स्तुवती भक्तितोऽर्हतः।।१७४।। ददती पात्रदानानि मानयन्ती महामुनीन्। शृण्वती धर्ममाकण्र्य भावयन्ती मुहुर्मुहुः।।१७५।। आप्तागमपदार्थांश्च प्राप्तसम्यक्त्वशुद्धिका। अथ फाल्गुननन्दीश्वरेऽसौ भक्त्या जिनेशिनाम्।।१७६।। विधायाष्ठाह्निकीं पूजामभ्यच्र्यार्चा यथाविधि। कृतोपवासा तन्वङ्गी शेषां दातुमुपागता।।१७७।। नृपं सिंहासनासीनं सोऽप्युत्थाय कृताञ्जलिः। तद्दत्तशेषामादाय निधाय शिरसि स्वयम्।।१७८।। उपवासपरिश्रान्ता पुत्रिके त्वं प्रयाहि ते। शरणं पारणाकाल…
सम्मेदशिखर तीर्थ वंदना माहात्म्य जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र के आर्यखण्ड में दो ही तीर्थ शाश्वत हैं-१. अयोध्या २. सम्मेदशिखर तीर्थ। जो अनादिनिधन तीर्थ हैं वे शाश्वत कहलाते हैं। अनादिकाल से अयोध्या में तीर्थंकर भगवान जन्म लेते रहे हैं और सम्मेदशिखर तीर्थ से मोक्ष को प्राप्त करते रहे हैं लेकिन हुण्डावसर्पिणी काल के दोष के कारण वर्तमान…
समयसार-अमृतकलश पद्यावली आचार्य श्री कुन्दकुन्ददेव ने समयसार नामक महानग्रंथ की रचना करके बहुत बड़ा उपकार किया है। इस ग्रंथ के बारे में कहा जाता है कि- तरणकला जाने बिना, ज्यों नहिं नैया पार। समयसार जाने बिना, त्यों नहिं हो भव पार।। यह समयसार जीवन की अमूल्य निधिस्वरूप है। पूज्य आर्यिका श्री अभयमती माताजी ने इस…