धर्मध्यान श्री गौतमस्वामी ने प्रतिक्रमण पाठ में धर्मध्यान के दश भेद कहे हैं— ‘दसण्णं धम्मज्झाणाणं। दससु धम्मज्झाणेसु। दससु धम्मज्झाणेसु दसविह धम्मज्झाणाणं। मुनिचर्या पृ. २४, १३५, १७०, २३१।टीकाकार श्री प्रभाचन्द्राचार्य ने उनके नाम व लक्षण दिये हैं— अपायविचय उपायविचय विपाकविचय विरागविचय लोकविचय भवविचय जीवविचय आज्ञाविचय संस्थानविचय संसारविचय ये १० धर्मध्यान है। चारित्रसार में भी धर्मध्यान के…
जीवसमास प्रकरण जीव समास का लक्षण जेहिं अणेया जीवा, णज्जंते बहुविहा वि तज्जादी। ते पुण संगहिदत्था, जीवसमासा त्ति विण्णेया।।२७।। यैरनेके जीवा नयन्ते, बहुविधा अपि तज्जातय:। ते पुन: संगृहीतार्था, जीवसमासा इति विज्ञेया:।।२७।। अर्थ—जिनके द्वारा अनेक जीव तथा उनकी अनेक प्रकार की जाति जानी जाएँ, उन धर्मों को अनेक पदार्थों का संग्रह करने वाले होने से जीवसमास…
सप्त परमस्थान सज्जाति: सद्गृहस्थत्वं पारिव्राज्यं सुरेन्द्रता। ‘साम्राज्यं परमार्हन्त्यं निर्वाणं चेति सप्तधा।। १. सज्जाति, २. सद्गृहस्थता (श्रावक के व्रत), ३. पारिव्राज्य (मुनियों के व्रत) ४. सुरेन्द्रपद, ५. साम्राज्य (चक्रवर्तीपद), ६. अरहंतपद और ७. निर्वाणपद ये सात परमस्थान कहलाते हैं। सम्यग्दृष्टि जीव क्रम–क्रम से इन परमस्थान को प्राप्त कर लेता है। इन्हें कर्तृन्वय क्रिया भी कहते हैं…