आचार्य कुन्दकुन्द और उनका साहित्य
आचार्य कुन्दकुन्द और उनका साहित्य जैन मूल संघ के आर्श स्वरूप के दृढ़ स्थितिकरण के महनीय कार्य के सम्पादन हेतु आपका नाम सर्वाेपरि रूप में अत्यन्त विनय के साथ लिया जाता है। कहा भी है, वन्द्यो विभुर्न भुवि कैरिह कौण्डकुन्दः। कुन्दप्रभाप्रणयिकीर्त्तिविभूशिताषः।। यष्चारुचारणकराम्बुजचत्र्चरीकष् चक्रे श्रुतस्य भरते प्रयतः प्रतिश्ठाम् ।। दि० जैन सम्प्रदाय में तो प्रत्येक…