06. संवेगभावना पूजा
(पूजा नं.-6) संवेगभावना पूजा -स्थापना- तर्ज-श्रीपति जिनवर करुणायतनं…… हे नाथ! तुम्हारी पूजन का, शुभ भाव हृदय में आया है। जग के दु:खों से घबराकर, यह भक्त तेरे ढिग आया है।।टेक.।। सोलहकारण की एक-एक,…
(पूजा नं.-6) संवेगभावना पूजा -स्थापना- तर्ज-श्रीपति जिनवर करुणायतनं…… हे नाथ! तुम्हारी पूजन का, शुभ भाव हृदय में आया है। जग के दु:खों से घबराकर, यह भक्त तेरे ढिग आया है।।टेक.।। सोलहकारण की एक-एक,…
(पूजा नं.-5) अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोग भावना पूजा -स्थापना-दोहा- सम्यक् ज्ञानाभ्यास में, नित्य रहें जो लीन। वे मुनि अपने ध्यान से, करें कर्म को क्षीण।।१।। ज्ञान तथा ज्ञानी पुरुष, हैं त्रिलोक में पूज्य। वही ज्ञान मुझको मिले, बन जाऊँ जगपूज्य।।२।। सोलहकारण भावना, में चतुर्थ का नाम। …
(पूजा नं.-4) शीलव्रतेष्वनतिचार भावना पूजा -स्थापना-गीता छंद – सोलह सुकारण भावना में, है तृतिय जो भावना। शील अरु व्रत में नहीं, अतिचार हों यह कामना।। इस भावना की अर्चना में मैं करूँ आह्वानना। मन में बिठाऊँ भावना कर पुष्प से स्थापना।।१।। ॐ ह्रीं शीलव्रतेष्वनतिचार भावना! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। …
(पूजा नं.-3) विनयसम्पन्नता भावना पूजा -स्थापना (अडिल्ल छंद)- सोलहकारण में द्वितीय है भावना। कही विनयसम्पन्नता है भावना।। उसकी पूजन हेतु करूँ स्थापना। भाव यही है विनयभाव मन धारना।।१।। ॐ ह्रीं विनयसम्पन्नता भावना! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। ॐ ह्रीं विनयसम्पन्नता भावना! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ: स्थापनं। …
(पूजा नं.-2) दर्शनविशुद्धि भावना पूजा -स्थापना (अडिल्ल छंद)- सोलहकारण में है पहली भावना। करना है दर्शनविशुद्धि की कामना।। आत्मा में सम्यक्त्व विशुद्धि बढ़ाइये। आह्वानन कर पुष्पांजलि चढ़ाइये।।१।। ॐ ह्रीं दर्शनविशुद्धिभावना! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। ॐ ह्रीं दर्शनविशुद्धिभावना! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ: स्थापनं। …
सोलहकारण पूजा (समुच्चय पूजा) तर्ज-अब ना छुपाऊँगा………. दर्शनविशुद्धि हो, आतम की शुद्धि हो, आगे तीर्थंकर बनके, इस…
पूजा नं. 2 श्रीवासुपूज्य जिनपूजा अथ स्थापना-गीता छंद श्रीवासुपूज्य जिनेन्द्र वासव-गणों से पूजित सदा। इक्ष्वाकुवंश दिनेश काश्यप-गोत्र पुंगव शर्मदा।। सप्तर्द्धिभूषित गणधरों से, पूज्य त्रिभुवन वंद्य हैं। आह्वान कर पूजूँ यहाँ, मिट जाएगा भव फंद है।।१।। -गीता छंद- वासुपूज्य तीर्थेश प्रभु, बालयती जगवंद्य। नमूं नमूं नित भक्ति से, पाऊं परमानंद।।२।। ॐ ह्रीं श्रीवासुपूज्यतीर्थंकर! अत्र…
पूजा नं. 1 श्री अर्हंत पूजा स्थापना—गीता छंद अरिहंत प्रभु ने घातिया को घात निज सुख पा लिया। छ्यालीस गुण के नाथ अठरह दोष का सब क्षय किया।। शत इंद्र नित पूजें उन्हें गणधर मुनी वंदन करें। हम भी प्रभो! तुम अर्चना के हेतु अभिनन्दन करें।।१।। ॐ ह्रीं अर्हन् नम: हे अर्हत्परमेष्ठिन्! अत्र अवतर अवतर…
श्री वासुपूज्य विधान मंगलाचरण -उपेंद्रवङ्काा छंद- देवेंद्रवृंदैर्नरनाथमुख्यै:, मुनीश्वरै: सर्वगणाधिपैश्च। सदा प्रपूज्यो भुवनेषु पूज्य: त्वां वासुपूज्यं प्रणमामि भक्त्या।।१।। -शंभु छंद- आत्मा औ तनु के अन्तर को, कर तनु से निर्मम हो जाऊँ। मैं शुद्ध बुद्ध परमात्मा हूँ, यह समझ स्वयं में रम जाऊँ।। इंद्रिय बल आयु श्वास चार, प्राणों को धर—धर मरता हूँ। निश्चय नय से…
सिद्धों के आठ गुणों की पूजा -अथ स्थापना (तर्ज-तुमसे लागी लगन……)- नाथ! त्रिभुवनपती, पाई पंचमगती, इन्द्र आये। भक्ति से आपको शिर झुकायें।। …