02. नवदेवता पूजन(मराठी)
नवदेवता पूजन (मराठी) तर्ज-देख तेरे संसार की हालत……. नवदेवांची पूजन करतो मिळते नव निधी महान, जय जय जय नव देव…
नवदेवता पूजन (मराठी) तर्ज-देख तेरे संसार की हालत……. नवदेवांची पूजन करतो मिळते नव निधी महान, जय जय जय नव देव…
नवदेवता पूजन (हिन्दी) गीता छन्द अरिहंत सिद्धाचार्य पाठक, साधु त्रिभुवन वंद्य हैं। जिनधर्म जिनआगम जिनेश्वर, मूर्ति जिनगृह वंद्य हैं।। नव देवता ये मान्य जग में, हम सदा अर्चा करें। आह्वान कर थापें यहाँ, मन में अतुल श्रद्धा धरें।। ॐ ह्रीं अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधु-जिनधर्मजिनागमजिनचैत्य- चैत्यालयसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। …
बड़ी जयमाला -दोहा- घाति चतुष्टय घातकर प्रभु तुम हुए कृतार्थ। नव केवल लब्धीरमा, उसको किया सनाथ।।१।। -शेरछंद- प्रभु दर्शमोहनीय को निर्मूल किया है। सम्यक्त्व क्षायिकाख्य को परिपूर्ण किया है।। चारित्र मोहनीय का विनाश जब किया। क्षायिक चरित्र नाम यथाख्यात को लिया।।२।। संपूर्ण ज्ञानावर्ण का जब आप क्षय किया। कैवल्य ज्ञान से त्रिलोक…
भगवान श्री शांतिनाथ जिनपूजा अथ स्थापना-गीता छंद हे शांतिजिन! तुम शांति के, दाता जगत विख्यात हो। इस हेतु मुनिगण आपके, पद में नमाते माथ को।। निज आत्मसुखपीयूष को, आस्वादते वे आप में। इस हेतु प्रभु आह्वान विधि से, पूजहूँ नत माथ मैं।।१।। ॐ ह्रीं श्रीशांतिनाथजिनेन्द्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट्…
मंगल स्तोत्र -पृथ्वी छंद- शतेन्द्र – मुनिवृंद – वंदित – मनोज्ञ – सौन्दर्यभृत्। सुषोडश च तीर्थकृत् त्वमिह पंचमश्चक्रभृत्।। स्तुते त्वयि च पूज्यपाद-मुनिनामले स्तो दृशौ। ममापि खलु शान्तिनाथ! वितनु प्रसन्नां दृशम्।।१।। -शम्भु छन्द– सौ इन्द्र वंद्य मुनिवृंदवंद्य, बारहवें कामदेव सुन्दर। षोडश तीर्थंकर शांतिनाथ! प्रभु आप पाँचवें चक्रेश्वर।। स्तोता मुनि पूज्यपाद की, तुमने दृष्टी…
पूजा नं. 2 श्री अजितनाथ जिन पूजा -अथ स्थापना-गीता छंद- इस प्रथम जम्बूद्वीप में, है भरतक्षेत्र सुहावना। इस मध्य आरजखंड में, जब काल चौथा शोभना।। साकेतपुर में इन्द्र वंदित, तीर्थकर जन्में जभी। उन अजितनाथ जिनेश को, आह्वान कर पूजूँ अभी।।१।। ॐ ह्रीं श्रीअजितनाथतीर्थंकर! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। ॐ ह्रीं श्रीअजितनाथतीर्थंकर! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ:…
पूजा नं. 1 श्री अर्हंत पूजा स्थापना—गीता छंद अरिहंत प्रभु ने घातिया को घात निज सुख पा लिया। छ्यालीस गुण के नाथ अठरह दोष का सब क्षय किया।। शत इंद्र नित पूजें उन्हें गणधर मुनी वंदन करें। हम भी प्रभो! तुम अर्चना के हेतु अभिनन्दन करें।।१।। ॐ ह्रीं अर्हन् नम: हे अर्हत्परमेष्ठिन्! अत्र अवतर…
मंगलाचरण नमस्तेऽजितनाथाय, कर्मशत्रुजयाय ते। अजेयशक्तिलाभार्थ—मजिताय नमो नम:।।१।। श्री अजितनाथ स्तोत्र (श्रीमत्समन्तभद्राचार्य—विरचित) —उपजाति छंद— यस्य प्रभावात्त्रिदिव-च्युतस्य क्रीडास्वपि क्षीव-मुखारविन्दः। अजेयशक्ति -र्भुवि बन्धुवर्ग: चकार नामाजित इत्यवन्ध्यम्।।१।। अद्यापि य स्या – जितशासनस्य, सतां प्रणेतुः प्रतिमंगलार्थम् । प्रगृह्यते नाम परं पवित्रं, स्वसिद्धि – कामेन जनेन लोके।।२।। …
पूजा नं.—2 श्री महर्षि पूजा समवसरणस्थित ऋषिगण पूजा —अथ स्थापना-गीता छंद— जो महर्षि तीर्थेश समवसृति में सदा ही तिष्ठते। वे सात भेदों में र हें निज मुक्तिकांता प्रीति तें।। केवलि विपुलमति, अवधिज्ञानी, पूर्वधर ऋषिवर वहां। विक्रियधरा, शिक्षक व वादी मैं उन्हें पूजूं यहां।। ॐ ह्रीं चतुर्विंशतितीर्थंकरसमवसरणस्थितसर्वऋषिसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। …
पूजा नं.—1 समवसरण पूजा अथ स्थापना—शंभु छंद रत्नों के खंभों पर सुस्थित, मुक्तामालाओं से सुंदर। श्री मंडपभूमि आठवीं है, द्वादशगण रचना से मनहर।। इनमें जो मुनी आर्यिका हैं, हम उनका वंदन करते हैं। इन समवसरण युत जिनवर का, आह्वानन कर हम यजते हैं।। ॐ ह्रीं श्रीसमवसरणविभूतिधारकचतुर्विंशतितीर्थंकरसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। …