01. सप्तऋषि पूजा
सप्तऋषि पूजा सप्तऋषि वंदना तर्ज-पंखिड़ा………. वंदना करूँ मैं सप्तऋषिराज की। गगन गमन ऋद्धिधारी मुनिराज की।।वंदना….।।टेक.।। सात भाइयों ने एक साथ दीक्षा ले लिया। विषय भोग हैं असार सबको शिक्षा…
सप्तऋषि पूजा सप्तऋषि वंदना तर्ज-पंखिड़ा………. वंदना करूँ मैं सप्तऋषिराज की। गगन गमन ऋद्धिधारी मुनिराज की।।वंदना….।।टेक.।। सात भाइयों ने एक साथ दीक्षा ले लिया। विषय भोग हैं असार सबको शिक्षा…
पूजा नं.-6 प्रकीर्णक तारक जिनालय पूजा अथ स्थापना-शंभु छंद एकेक शशि के प्रकीर्णक, तारे चमकते गगन में। छ्यासठ सहस नौ सौ पचहत्तर कोटिकोटी अधर में।। ये अर्ध गोलक सम इन्हों के, मध्य ऊँचे कूट हैं। उन पर जिनेश्वर धाम पूजूँ, जैन प्रतिमा युक्त हैं।।१।। ॐ ह्रीं मध्यलोके प्रकीर्णकताराविमानस्थितसंख्यातीतजिनालयजिनबिम्बसमूह! अत्र अवतर-अवतर संवौषट् आह्वाननं। …
पूजा नं.-5 नक्षत्र जिनालय पूजा अथ स्थापना-गीता छंद एकेक शशि के नखत अट्ठाईस नभ में चमकते। सब अर्ध गोलक सदृश निचले भाग से ही दमकते।। इन सब विमानन मध्य स्वर्णिम कूट पर जिनधाम हैं। पूजूँ जिनेश्वर बिंब मैं आह्वान कर इत ठाम हैं।।१।। ॐ ह्रीं मध्यलोके नक्षत्र विमानस्थितसंख्यातीतजिनालयजिनबिम्बसमूह! अत्र अवतर-अवतर संवौषट् आह्वाननं। …
पूजा नं.-4 ग्रह जिनालय पूजा अथ स्थापना-शंभु छंद एकेक चंद्र के अट्ठासी-अट्ठासी ग्रह श्रुत में माने। ये ज्योतिर्वासी देव अर्ध गोलक विमान में सरधाने।। इन सब विमान में दिव्यकूट उन पर शाश्वत जिनमंदिर हैं। जिन प्रतिमा इकसौ आठ-आठ, जिन वंदन करें मुनीश्वर हैं।।१।। ॐ ह्रीं मध्यलोके ग्रह विमानस्थितसंख्यातीतजिनालयजिनबिम्बसमूह! अत्र अवतर-अवतर संवौषट् आह्वाननं। …
पूजा नं.-3 सूर्य जिनालय पूजा अथ स्थापना-नरेन्द्र छंद इस प्रथम जंबू द्वीप में दो सूर्य दिन दिन चमकते। ये ढाईद्वीपों तक सु इक सौ बत्तिसे दिनकर दिपें।। ये अर्ध गोलक सम सभी भास्कर विमान प्रकाशते। इन मध्य जिनमंदिर जजूँ ये आत्म ज्योति प्रकाशते।।१।। ॐ ह्रीं मध्यलोके सूर्यवमानस्थितसंख्यातीतजिनालयजिनबिम्बसमूह! अत्र अवतर-अवतर संवौषट् आह्वाननं। …
पूजा नं.-2 चंद्रमा जिनालय पूजा अथ स्थापना-नरेन्द्र छंद जंबुदीप लवणोदधि से ले, असंख्यात द्वीपोदधि। अंतिम जलधि स्वयंभूरमणं, तक पैले ये ज्योतिषि।। चंद्र इंद्र हैं ये भी संख्यातीत कहाये जग में। इनके बिंबों के जिनगृह को, पूजूँ रुचिधर मन में।।१।। ॐ ह्रीं मध्यलोके चंद्रविमानस्थितसंख्यातीतजिनालयजिनबिम्बसमूह! अत्र अवतर-अवतर संवौषट् आह्वाननं। …
पूजा नं.-1 ज्योतिष्क देव जिनालय पूजा अथ स्थापना-शंभु छंद पृथ्वी से सात शतक नब्बे, योजन ऊपर ज्योतिष सुर हैं। रवि शशि ग्रह नखत और तारे, ये पाँच भेद ज्योतिष सुर हैं।। सबके विमान में जिनमंदिर, मणिमय शाश्वत जिनप्रतिमायें। उनको आह्वानन कर पूजूँ, ये मोक्षमार्ग को दिखलायें।।१।। ॐ ह्रीं ज्योतिष्कदेवविमानस्थितसंख्यातीतजिनालयजिनबिम्बसमूह! अत्र अवतर-अवतर संवौषट् आह्वाननं। …
ज्योतिर्लोक जिनालय विधान मंगलाचरणम् भवनविमानज्योति—र्व्यन्तरलोकविश्वचैत्यानि। त्रिजगदभिवन्दितानां, वन्दे त्रेधा जिनेंद्राणाम्।।१।। ज्योतिषामथ लोकस्य, भूतयेऽद्भुतसंपद:। गृहा: स्वयंभुव:सन्ति, विमानेषु नमामि तान्।।२।। इति स्तुतिपथातीत—श्रीभृतामर्हतां मम। चैत्यानामस्तु संकीर्ति:, सर्वास्रवनिरोधिनी।।३।। ज्योतिर्व्यंतर भावनामरगृहे, मेरौ कुलाद्रौ तथा। जंबूशाल्मलि चैत्यशाखिषु तथा वक्षाररूप्याद्रिषु।। इष्वाकारगिरौ च कुण्डलनगे, द्वीपे च नंदीश्वरे। शैले ये मनुजोत्तरे जिनगृहा:, कुर्वन्तु मे (न:) मंगलम्।।४।। —आर्यास्कंध छंद— ज्योतिर्लोकेऽगणिता भासन्ते भासमानसुरनुत निलया:। तेषु जिनसूर्यबिम्बान् ,…
सुदर्शन मेरु पूजा अथ स्थापना-शंभु छंद त्रिभुवन के बीचों बीच कहा, सबसे ऊँचा मंदर पर्वत। सोलह चैत्यालय हैं इस पर, अकृत्रिम अनुपम अतिशययुत।। निज समता रस के आस्वादी, ऋषिगण जहाँ विचरण करते हैं। तीर्थंकर के अभिषव होते, उस गिरि की पूजा करते हैं।।१।। ॐ ह्रीं सुदर्शनमेरुसंबंधि-षोडशचैत्यालयस्थ-सर्वजिनबिम्बसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। …
श्री सुदर्शनमेरु जिनालय विधान सुदर्शनमेरु भक्ति (वसंततिलका छंद) तीर्थंकर – स्नपननीर – पवित्रजात:, तुङ्गोऽस्ति यस्त्रिभुवने निखिलाद्रितोऽपि। देवेन्द्र – दानव – नरेन्द्र – खगेन्द्रवंद्य:, तं श्रीसुदर्शनगिरिं सततं नमामि।।१।। यो भद्रसालवन – नंदन – सौमनस्यै:, भातीह पांडुकवनेन च शाश्वतोऽपि। चैत्यालयान् प्रतिवनं चतुरो विधत्ते, तं श्रीसुदर्शनगिरिं सततं नमामि।।२।। जन्माभिषेकविधये जिनबालकानाम्, वंद्या: सदा यतिवरैरपि पांडुकाद्या:। धत्ते विदिक्षु महनीयशिलाश्-चतसृ:, तं…