क्या राजा सोमप्रभ एवं श्रेयांस श्री कामदेव बाहुबली के पुत्र थे युग की आदि में भगवान ऋषभदेव ने अयोध्या नगरी में जन्म लिया था। माता मरुदेवी एवं पिता नाभिराज ने यौवन अवस्था में भगवान ऋषभदेव का विवाह यशस्वती और सुनन्दा नामक दो कन्याओं के साथ सम्पन्न किया, जिसमें से महारानी यशस्वती ने क्रम-क्रम से भरत…
बोधप्राभृत सार ग्यारह महत्वपूर्ण स्थान (१) आयतन (२) चैत्यगृह (३) जिनप्रतिमा (४) दर्शन (५) जिनबिंब (६) जिनमुद्रा (७) ज्ञान (८) देव (९) तीर्थ (१०) अरहन्त (११) प्रव्रज्या इन ग्यारह विषयों को बोधप्राभृत में वर्णन किया है। (१) आयतन — जिनमार्ग में जो संयम सहित मुनिरूप है उसे आयतन कहा है। अर्थात् मन, वचन, काय और…
ध्यान के भेद किसी एक विषय में चित्त को रोकना ध्यान है, इसके चार भेद हैं। आर्तध्यान, रौद्रध्यान, धर्मध्यान और शुक्लध्यान। आर्तध्यान–दु:ख में होने वाले ध्यान को आर्तध्यान कहते हैं। इसके चार भेद हैं- (१) इष्ट का वियोग हो जाने पर बार-बार उसका चिंतवन करना इष्ट वियोगज आर्तध्यान है। (२) अनिष्ट का संयोग हो…
पर्याप्ति प्ररूपणा सार पर्याप्ति—ग्रहण किये गये आहार वगर्णा को खल-रस भाग आदि रूप परिणमन कराने की जीव की शक्ति के पूर्ण हो जाने को ‘‘पर्याप्ति’’ कहते हैं। ये पर्याप्तियाँ जिनके पाई जाएं उनको पर्याप्त और जिनकी वह शक्ति पूर्ण न हो उन जीवों को अपर्याप्त कहते हैं। जिस प्रकार कि घट, पट आदि द्रव्य बन…
सचित्त को अचित्त करने की विधि सच्चित्तं पत्तं फलं छल्ली मूलं च किसलयं बीयं। जो ण य भक्खदि णाणी सचित्त-विरदो हवे सो दु।।३७९।। (छाया-सचित्तं पत्रफलं त्वक् मूलं च किसलयं बीजम् । यः न च भक्षयति ज्ञानी सचित्तविरतः भवेत् स तु ।।) सोऽपि प्रसिद्धः,अपि शब्दात् न केवलमग्रेसरः, श्रावकः सचित्तविरत: सचित्तेभ्यः जलफलादिभ्यो विरतः विगतरागः निवृत्तःभवेत् यः ज्ञानी…
संक्रांति में जैनेश्वरी दीक्षा का मुहूर्त नहीं है गार्हस्थ्यमनुपाल्यैवं गृहवासाद् विरज्यतः। यद्दीक्षाग्रहणं तद्धि पारिव्राज्यं प्रचक्ष्यते।।१५५।। पारिव्राज्यं परिव्राजो भावो निर्वाणदीक्षणम्। तत्र निर्ममता वृत्या जातरूपस्य धारणम्।।१५६।। प्रशस्ततिथिनक्षत्रयोगलग्न ग्रहांशके। निग्र्रन्थाचार्यमाश्रित्य दीक्षा ग्राह्या मुमुक्षुणा।।१५७।। विशुद्धकुलगोत्रस्य सद्वृत्तस्य वपुष्मतः। दीक्षायोग्यत्वमाम्नातं सुमुखस्य सुमेधसः।।१५८।। ग्रहोपरागग्रहणे परिवेषेन्द्रचापयोः। वक्रग्रहोदये मेघपटलस्थगितेऽम्बरे।।१५९।। नष्टाधिमासदिनयोः, संक्रान्तौ हानिमत्तिथौ। दीक्षावििंध मुमुक्षूणां नेच्छन्ति कृतबुद्धयः।।१६०।। संप्रदायमनादृत्य यस्त्विमं दीक्षयेदधीः। स साधुभिर्बहिः कार्यो वृद्धात्यासादनारतः।।१६१।। इस…
अकृत्रिम जिनमंदिर के बावड़ी में जिनमंदिर चउजोयणउच्छेहा उवरिं पीढस्स कणयवरखंभा। विविहमणिणियरखचिदा चामरघंटापयारजुदा।।१९१२।। सव्वेसुं थंभेसुुं महाधया विविहवण्णरमणिज्जा। णामेण महिंदधया छत्तत्तयसिहरसोहिल्ला।।१९१३।। पुरदो महाधयाणं मकरप्पमुहेहिं मुक्कसलिलाओ। चत्तारो वावीओ कमलुप्पलकुमुदछण्णाओ।।१९१४।। पण्णासकोसउदया कमसो पणुवीस रुंददीहत्ता। दस कोसा अवगाढा वावीओ वेदियादिजुत्ताओ।।१९१५।। को ५० । १०० । गा १० । वावीणं बहुमज्झे चेट्ठदि एक्को जिणिंदपासादो। विप्पुरिदरयणकिरणो किंबहुसो सो णिरुवमाणो।।१९१६।। तत्तो दहाउ पुरदो…
द्वारिकापुरी द्वारिका नगरी की रचना— इधर जमाई और भाई आदि के वध से जरासंध ने समस्त यादवों को नष्ट करने का मन में पक्का विचार कर लिया था तब उसने अपरिमित सेना को साथ लेकर यादवों की ओर प्रयाण कर दिया। उस समय गुप्तचरों द्वारा यादवों को इस बात का पता चल गया। राजा समुद्रविजय…
नियमसार : अनुपम बोधामृत प्रातः स्मरणीय आ० कुन्दकुन्द देव की 187 गाथाओं में रचित यह अनुपम कृति है। बारह अधिकारों में, जीव, अजीव, शुद्धभाव, व्यवहार चारित्र, परमार्थ प्रतिक्रमण, निष्चय परमावष्यक, शाद्धोपयोग आदि में अपने विशय का निरवषेश वर्णन करने वाला यह बोधामृत है। प्रस्तुत शाध प्रबन्ध की केन्द्र बिन्दु स्याद्वाद चन्द्रिका टीका में आर्यिका ज्ञानमती…