04. कौशाम्बी तीर्थ पूजा
कौशाम्बी तीर्थ पूजा तर्ज- आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं…… पदमचिन्ह युत पदमप्रभू की, जन्मभूमि वन्दना करें। कौशाम्बी शुभ तीर्थ ऐतिहासिक, की हम अर्चना करें।। …
कौशाम्बी तीर्थ पूजा तर्ज- आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं…… पदमचिन्ह युत पदमप्रभू की, जन्मभूमि वन्दना करें। कौशाम्बी शुभ तीर्थ ऐतिहासिक, की हम अर्चना करें।। …
श्रावस्ती तीर्थ पूजा स्थापना (शंभु छंद) श्री संभव जिन के जन्मकल्याणक, से पावन श्रावस्ती है। जहाँ मात सुषेणा के आँगन में, हुई रत्न की वृष्टी है।। उस श्रावस्ती तीरथ की पूजन, करके पुण्य कमाना है। आह्वानन स्थापन करके, आत्मा में तीर्थ बसाना है।। ॐ ह्रीं तीर्थंकर श्रीसंभवनाथ जन्मभूमि श्रावस्तीतीर्थक्षेत्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। …
अयोध्या तीर्थ पूजा अथ स्थापना तर्ज-गोमटेश, जय गोमटेश…… आदिनाथ, जय आदिनाथ, मम हृदय विराजो-२ हम यही भावना करते हैं। भावना करते हैं,…
तीर्थंकर जन्मभूमि तीर्थ पूजा समुच्चय पूजा स्थापना (शंभु छन्द) तीर्थंकर श्री ऋषभदेव से, महावीर तक करूँ नमन। चौबीसों जिनवर की पावन, जन्मभूमियों को वन्दन।। जैनी संस्कृति के दिग्दर्शक, इन तीर्थों का करूँ यजन। मेरी आत्मा बने अजन्मा, जन्मभूमि का कर पूजन।।१।। दोहा आह्वानन स्थापना, सन्निधिकरण प्रधान। पूजन के प्रारंभ में, है यह विधि महान।।२।। ॐ…
बड़ी जयमाला -दोहा- विश्ववंद्य नवदेवता, नवलब्धी दातार। नमूँ नमूँ नितभक्ति से, भरूँ सुगुण भंडार।।१।। -शंभु छंद- जय जय अर्हंत देव जिनवर, जय जय छ्यालिस गुण के धारी। जय समवसरण वैभव श्रीधर, जय जय अनंत गुण के धारी।। जय जय जिनवर केवलज्ञानी, गणधर अनगार केवली सब। जय गंधकुटी में दिव्यध्वनी, सुनते असंख्य सुर नर पशु सब।।२।।…
(पूजा नं.-10) जिनचैत्यालय पूजा -अथ स्थापना-नरेन्द्र छंद- त्रिभुवन के जिनमंदिर शाश्वत, आठ कोटि सुखराशी। छप्पन लाख हजार सत्यानवे, चार शतक इक्यासी।। व्यंतर ज्योतिष सुरगृह में हैं, असंख्यात जिनमंदिर। ढाईद्वीप के कृत्रिम जिनगृह, पूजूँ सर्व हितंकर।।१।। ॐ ह्रीं श्रीजगत्त्रयवर्तिजिनचैत्यालयसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। ॐ…
(पूजा नं.-9) जिनचैत्य पूजा -स्थापना-नरेन्द्र छंद- त्रिभुवन में जिनप्रतिमा शाश्वत, असंख्यात हैं वर्णित। ढाई द्वीप में कृत्रिम प्रतिमा, सुर नर निर्मित अगणित।। इन सबका आह्वानन कर मैं, भक्ति भाव से ध्याऊँ। जिनप्रतिमा जिनसदृश पूज्य हैं, वंदन कर सुख पाऊँ।।१।। ॐ ह्रीं श्रीजगत्त्रयवर्तिजिनबिंबसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। …
(पूजा नं.-8) जिनागम पूजा -स्थापना-गीताछंद- जिनदेव के मुख से खिरी, दिव्यध्वनी अनअक्षरी। गणधर ग्रहण कर द्वादशांगी, ग्रंथमय रचना करी।। उन अंग पूरब शास्त्र के ही, अंश ये सब शास्त्र हैं। उस जैनवाणी को जजूँ, जो ज्ञान अमृत सार है।।१।। ॐ ह्रीं श्रीजिनेन्द्रदेवमुखकमलविनिर्गतद्वादशांगअंगबाह्यसर्वजिनागम- समूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। …
(पूजा नं.-7) जिनधर्म पूजा -अथ स्थापना-गीताछंद- उत्तम क्षमादी धर्म हैं, औ दया धर्म प्रधान है। वस्तू स्वभाव सु धर्म है, औ रत्नत्रय गुणखान है।। जो जीव को ले जाके धरता सर्व उत्तम सौख्य में। वह धर्म है जिनराज भाषित पूजहूँ तिंहुकाल मैं।।१।। -दोहा- भरतैरावत क्षेत्र में, चौथे पांचवे काल। शाश्वत रहे विदेह में, धर्म जगत्…
(पूजा नं- 6) सर्वसाधु पूजा -स्थापना-गीताछंद- जो नित्य मुक्तीमार्ग रत्नत्रय स्वयं साधें सही। वे साधु संसाराब्धि तर पाते स्वयं ही शिव मही।। वहं पे सदा स्वात्मैक परमानंद सुख को भोगते। उनकी करें हम अर्चना, वे भक्त मन मल धोवते।।1।। ॐ ह्री णमो लोए सव्वसाहूणं श्रीसर्वसाधुपरमेष्ठिसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्नाननं। …