सीता की आर्यिका दीक्षा
सीता की आर्यिका दीक्षा (२४०) सीता बोली हे नाथ! नहीं, इसमें कुछ दोष तुम्हारा है। मैं नहीं किसी पर कुपित देव! निजकर्मों से जग हारा है।। हे नाथ ! बहुत सुख भोग लिए, अब और न कोई इच्छा है। दुखों का क्षय करने वाली, अब ग्रहण करूँगी दीक्षा है।। (२४१) प्रारम्भ कर दिया केशलोंच, खुद…