06. गुरुग्रहारिष्ट निवारक श्री महावीर जिनेन्द्र पूजा
गुरुग्रहारिष्ट निवारक श्री महावीर जिनेन्द्र पूजा -स्थापना- तर्ज-आने से जिसके आए बहार…….. दर्शन से जिनके कटते हैं पाप, पूजन से मिटते हैं गुरुग्रह ताप, मूरत सुहानी है-तेरी महावीरा, छवि जगन्यारी…
गुरुग्रहारिष्ट निवारक श्री महावीर जिनेन्द्र पूजा -स्थापना- तर्ज-आने से जिसके आए बहार…….. दर्शन से जिनके कटते हैं पाप, पूजन से मिटते हैं गुरुग्रह ताप, मूरत सुहानी है-तेरी महावीरा, छवि जगन्यारी…
बुधग्रह अरिष्ट निवारक श्री मल्लिनाथ पूजा -स्थापना- तर्ज-मेरे मन मन्दिर में आन……….. मेरे हृदय महल में आन, पधारो मल्लिनाथ भगवान।। आओ तिष्ठो नाथ! विराजो मण्डल ऊपर प्रभु तुम राजो।। बुधग्रह की बाधा हो हान, पधारो मल्लिनाथ भगवान।। ॐ ह्रीं बुधग्रहारिष्टनिवारकश्रीमल्लिनाथजिनेन्द्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। ॐ ह्रीं बुधग्रहारिष्टनिवारकश्रीमल्लिनाथजिनेन्द्र! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं। ॐ…
मंगलग्रह अरिष्ट निवारक श्री वासुपूज्य पूजा स्थापना-दोहा- वासुपूज्य जिनराज की, करूँ थापना आज। मंडल पर तिष्ठो प्रभो, पूरो मेरे काज।। ॐ ह्रीं मंगलग्रहारिष्टनिवारकश्रीवासुपूज्य जिनेन्द्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। ॐ ह्रीं मंगलग्रहारिष्टनिवारकश्रीवासुपूज्य जिनेन्द्र! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं। ॐ ह्रीं मंगलग्रहारिष्टनिवारकश्रीवासुपूज्य जिनेन्द्र! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधीकरणं स्थापनं। अष्टक-शंभुछंद जल का स्वभाव…
चन्द्रग्रह अरिष्ट निवारक श्री चन्द्रप्रभ पूजा स्थापना -गीताछंद- चन्दाकिरण समश्वेत चन्द्रप्रभु जिनेन्द्र समर्चना। शशिग्रह अरिष्ट विनाश हेतू, मैं करूँ अभ्यर्थना।। आओ विराजो नाथ मन-मन्दिर मेरा यह रिक्त है। बस भावना है प्रमुख मेरी, द्रव्य तो अतिरिक्त है।।१।। ॐ ह्रीं चन्द्रग्रहारिष्टनिवारकश्रीचन्द्रप्रभ जिनेन्द्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। ॐ ह्रीं चन्द्रग्रहारिष्टनिवारकश्रीचन्द्रप्रभ जिनेन्द्र! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः…
सूर्यग्रह अरिष्ट निवारक श्री पद्मप्रभ पूजा -स्थापना- दोहा-ग्रह अरिष्ट यदि सूर्य हो, पूजो पद्मजिनेन्द्र। कर्म असाता दूर हों, पा जाऊँ सुखसिन्धु।। ॐ ह्रीं सूर्यग्रहारिष्टनिवारकश्रीपद्मप्रभ जिनेन्द्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। ॐ ह्रीं सूर्यग्रहारिष्टनिवारकश्रीपद्मप्रभ जिनेन्द्र! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं। ॐ ह्रीं सूर्यग्रहारिष्टनिवारकश्रीपद्मप्रभ जिनेन्द्र! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधीकरणं स्थापनं। (अष्टक) नंदीश्वर पूजन…
नवग्रह पूजा समुच्चय पूजा (स्थापना) -कुसुमलता छंद- काल अनादी से कर्मों के, ग्रह ने मुझे सताया है। उनका निग्रह करने का अब, भाव हृदय में आया है।। इसीलिए ग्रह शान्ती हेतू, पूजा पाठ रचाया है। तीर्थंकर प्रभु के अर्चन को, मैंने थाल सजाया है।।१।। -दोहा- आह्वानन स्थापना, सन्निधिकरण महान। अष्टद्रव्य से पूर्व है, यह विधि…
श्री पार्श्वनाथ पूजा अथ स्थापना (तर्ज-गोमटेश जय गोमटेश मम हृदय विराजो……..) पार्श्वनाथ जय पार्श्वनाथ, मम हृदय विराजो-२ हम यही भावना भाते हैं, प्रतिक्षण ऐसी रुचि बनी रहे। हो रसना में प्रभु नाममंत्र, पूजा में प्रीती घनी रहे।।हम०।। हे पार्श्वनाथ आवो आवो, आह्वान आपका करते हैं। हम भक्ति आपकी कर करके, सब दुख संकट को हरते…
श्रीपार्श्वनाथ वंदना (उपजातिछंदः) कल्याणकल्पद्रुमसारभूतं, चिंतामणिं चिंतितदानदक्षम्। श्रीपार्श्वनाथस्य सुपादपद्मं, नमामि भक्त्या परया मुदा च।।१।। ध्याने स्थितो यो बहिरंतरंगं, त्यक्त्वोपधिं तत्र तदा जिनस्य। मातामहः स्यात् कमठासुरोऽसौ, अभूत् कुदेवः कुतपोऽभिरेव।।२।। रुद्धं विमानं पथि गच्छतो हा! ध्यानस्थपार्श्वं प्रविलोक्य रुष्ट्वा। शत्रुं च मत्वा कृतभीमरूपो, धाराप्रपातैः स चकार वृष्टिं।।३।। चकास्ति विद्युत् दशदिक्षु पिंगा, वात्या महद्ध्वांतमयं च कालं। घनाघनो गर्जति घोररावैः, प्रचंडवातैः…
नवदेवता पूजन गीता छन्द अरिहंत सिद्धाचार्य पाठक, साधु त्रिभुवन वंद्य हैं। जिनधर्म जिनआगम जिनेश्वरमूर्ति जिनगृह वंद्य हैं।। नव देवता ये मान्य जग में, हम सदा अर्चा करें। आह्वान कर थापें यहां मन में अतुल श्रद्धा धरें।। ॐ ह्रीं अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुजिनधर्मजिनागमजिन-चैत्यचैत्यालय समूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। ॐ ह्रीं अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुजिनधर्मजिनागमजिन-चैत्यचैत्यालय समूह! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं।…
पूजा नं. 2 श्री नमिनाथ तीर्थंकर पूजा -अथ स्थापना-गीता छंद- नमिनाथ के गुणगान से, भविजन भवोदधि से तिरें। मुनिगण तपोनिधि भी हृदय में, आपकी भक्ती धरें।। हम भी करें आह्वान प्रभु का, भक्ति श्रद्धा से यहाँ। सम्यक्त्व निधि मिल जाय स्वामिन्! एक ही वांछा यहाँ।।१।। ॐ ह्रीं श्रीनमिनाथतीर्थंकर! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। ॐ ह्रीं…