37. आत्मा के तीन भेद
आत्मा के तीन भेद १‘‘पंचपरमेष्ठियों को भावपूर्वक नमस्कार करके प्रभाकर भट्ट अपने परिणामों को निर्मल करके ही योगीन्द्रदेव से शुद्धात्मतत्त्व के जानने के लिए विनती करते हैं।’’ हे स्वामिन्! इस संसार में रहते हुए मेरा अनन्तकाल व्यतीत हो गया किन्तु मैंने कुछ भी सुख नहीं पाया, प्रत्युत् महान दु:ख ही पाया है। चतुर्गति दु:खों से…