आवली का प्रमाण अर्थासंदृष्टि के अनुसार आवली का चिह्न २ ( दो ) है जघन्य युक्तासंख्यात प्रमाण समयों की एक आवली होती है” जघन्य युक्तासंख्यात और आवली समान है अर्थात् एक आवली में जघन्य युक्तासंख्यात प्रमाण समय होते हैं ” जघन्य युक्तासंख्यात का प्रमाण – जघन्य परितासंख्यात का विरलन करके अर्थात् जघन्य परितासंख्यात प्रमाण एक-एक…
ध्यान बारह प्रकार के तप के अंतर्गत अभ्यन्तर तप के छह भेदों में अंतिम भेद ध्यान है। इस ध्यान के बल से ही मुनि कर्मों का नाश करते हैं। कहा भी है- ‘सभी सारों में भी सारभूत वस्तु क्या है? हे गौतम! वह सार ध्यान ही है, ऐसा सर्वदर्शियों ने कहा है। ध्यान का लक्षण-एक…
ऋद्धियों का वर्णन तपश्चर्या को करने वाले मुनि अनेक प्रकार की ऋद्धियों के स्वामी हो जाते हैं। ऋद्धियों के आठ भेद हैं-बुद्धिऋद्धि, विक्रियाऋद्धि, क्रियाऋद्धि, तपऋद्धि, बलऋद्धि, औषधिऋद्धि, रसऋद्धि और क्षेत्रऋद्धि। बुद्धिऋद्धि के १८, विक्रिया के ११, क्रिया के २, तप के ७, बल के ३, औषधि के ८, रस के ६ और क्षेत्र ऋद्धि के…
श्रावक की षट् आवश्यक क्रियाएँ जो पुरुष देवपूजा, गुरु की उपासना, स्वाध्याय, संयम, तप और दान इन षट्कर्मों के करने में तल्लीन रहता है, जिसका कुल उत्तम है, वह चूली, उखली, चक्की, बुहारी आदि गृहस्थ की नित्य षट् आरंभ क्रियाओं से होने वाले पाप से मुक्त हो जाता है तथा वही उत्तम श्रावक कहलाता है।…
साधु की दिनचर्या संयमी साधु शुद्ध स्वात्मोपलब्धि के प्रधान कारणभूत समाधि की सिद्धि के लिए अहर्निश स्वाध्याय आदि परिकर्म को विधिवत् करें। अर्धरात्रि के अनन्तर दो घड़ी व्यतीत हो जाने पर साधु निद्रा का त्याग करके अपररात्रिकस्वाध्याय-प्रतिष्ठापनक्रियायां पूर्वा श्रुतभक्तिकायोत्सर्गं करोम्यहं’’ नव बार णमोकार मंत्र का जाप्य करके ‘अर्हद्वक्त्रप्रसूतं’ इत्यादि लघुश्रुतभक्ति पढ़े। ‘‘अथ अपररात्रिकस्वाध्यायप्रतिष्ठापनक्रियायां आचार्यभक्तिकायोत्सर्गं…
पदविभागिक समाचार कोई धैर्य, वीर्य, उत्साह आदि गुणों से सहित मुनि अपने गुरु के पास सभी श्रुत पढ़कर अन्य आचार्य के पास पढ़ने के लिए यदि जाना चाहता है, तो वह गुरु के पास विनय से अन्यत्र जाने की आज्ञा हेतु बार-बार प्रश्न करता है। अवसर देखकर शिष्य तीन, पाँच अथवा छह बार प्रश्न करता…
समाचार का वर्णन समाचार शब्द के चार अर्थ हैं –रागद्वेष रहित प्रवृत्ति को समाचार कहते हैं अथवा निरतिचार मूलगुणों का आचरण समाचार है अथवा प्रमत्तसंयत आदि मुनियों का अहिंसादिरूप आचार समाचार है अथवा सब क्षेत्रों में कायोत्सर्ग आदि आचारों का पालन करना समाचार है। समाचार के दो भेद हैं –औघिक और पदविभागिक। सामान्य आचार…
औघिक के दश भेद इच्छाकार, मिथ्याकार, तथाकार, आसिका, निषेधिका, आपृच्छा, प्रतिपृच्छा, छंदन, सनिमंत्रण और उपसपंत्। इच्छाकार-सम्यग्दर्शन आदि इष्ट को हर्ष से स्वीकार करना। इसमें स्वेच्छा से प्रवृत्ति करना। मिथ्याकार- अतिचारों के होने पर ‘यह अपराध मिथ्या हो’ ऐसा मैं फिर नहीं करूँगा। ऐसा कहना। तथाकार- गुरु आदि से सूत्र का अर्थ सुनकर ‘यह सत्य है’…
आर्यिकाओं का समाचार आर्यिकाएँ परस्पर में अनुकूल रहें, ईष्र्या आदि से दूर रहें। उपर्युक्त मूलगुणों का और दश प्रकार के समाचार गुणों का पालन करें। आर्यिकाओं के लिए वृक्षमूल, आतापन आदि योग का निषेध है, बाकी सभी क्रियाएँ मुनियों के समान ही हैं। आर्यिकाएँ ग्राम से न अधिक दूर, न निकट, ऐसी वसतिका में मिलकर…