सोलह कारण भावना प्रस्तुति – गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी श्रेयोमार्गानभिज्ञानिह भवगहने जाज्ज्वलद्दु:खदाव-स्कन्धे चंक्रम्यमाणानतिचकितमिमानुद्धरेर्यं वराकान्।।इत्यारोहत्परानुग्रहरसविलसद्भावनोपात्तपुण्य-प्रक्रान्तैरेव वाक्यै: शिवपथमुचितान् शास्ति योऽर्हन् स नोऽव्यात् ।।१।। अर्थ-इस संसाररूपी भीषण वन में दु:खरूपी दावानल अग्नि अतिशय रूप से जल रही हैं। जिसमें श्रेयोमार्ग-अपने हित के मार्ग से अनभिज्ञ हुए ये बेचारे प्राणी झुलसते हुए अत्यंत भयभीत होकर इधर-उधर भटक…
मार्गणा मार्गणा शब्द का अर्थ है अन्वेषण। जिन भावों के द्वारा अथवा जिन पर्यायों में जीव का अन्वेषण किया जावे उनका नाम ‘मार्गणा’ है। मार्गणा के चौदह भेद-‘गति इन्द्रिय, काय, योग, वेद, कषाय, ज्ञान, संयम, दर्शन, लेश्या, भव्यत्व, सम्यक्त्व, संज्ञा और आहार ये चौदह मार्गणाएं हैं।’’ गति-गति नामकर्म के उदय से होने वाली जीव की…
नयों का वर्णन प्रमाण से जाने हुए पदार्थ के एक देश को ग्रहण करने वाले ज्ञाता के अभिप्राय विशेष को नय१ कहते हैं। नय के नव भेद हैं- द्रव्यार्थिक, पर्यायार्थिक, नैगम, संग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरूढ़ और एवंभूत। १. द्रव्य को विषय करने वाला द्रव्यार्थिक नय है। इसके १० भेद हैं-कर्मों की उपाधि से निरपेक्ष…
लव—कुश पुत्रों का जन्म (२०८) सीता को तब समझा करके, वे पुण्डरीकपुर ले आये । प्रिय सुनो पूर्णिमा सावन की, सीता ने युगल पुत्र जाये।। दोनों पुत्रों को देख—देख, सीता ने दुख बिसराया था। फिर शस्त्र—शास्त्र की शिक्षा में, उनको निष्णात कराया था।। (२०९) इस तरह लवण और अंकुश का, था बाल्यकाल कब बीत गया।…
देवों द्वारा राम को सम्बोधन (२५५) इस तरह राम के एक दिन कम, छह महिने ऐसे बीत गये। तब देवों ने उनके सम्मुख, विपरीत कार्य प्रारम्भ किये।। इक देव मनुष का वेष बना, सूखे वृक्षों को सींच रहा। पत्थर पर बीज डाल करके, दो मृतक बैल को खींच रहा।। (२५६) कोई पानी को मटके में…
सीता की आर्यिका दीक्षा (२४०) सीता बोली हे नाथ! नहीं, इसमें कुछ दोष तुम्हारा है। मैं नहीं किसी पर कुपित देव! निजकर्मों से जग हारा है।। हे नाथ ! बहुत सुख भोग लिए, अब और न कोई इच्छा है। दुखों का क्षय करने वाली, अब ग्रहण करूँगी दीक्षा है।। (२४१) प्रारम्भ कर दिया केशलोंच, खुद…
श्रीरामचन्द्र की मुनिदीक्षा (२६५) अब दीक्षा के थे भाव जगे, क्षण—क्षण बढ़ता वैराग्य गया । वस्त्राभूषण जब त्याग किये, देवों ने पंचाश्चर्य किया।। सुग्रीव विभीषण आदी भी, दीक्षा लेकर बन गये यती । सोलह हजार राजागण भी, उनके ही संग बन गये मुनी।। (२६६) श्रीरामचंद्र मुनि एकाकी, रह वन को पावन करते थे। वे तप…
राम—रावण का युद्ध (१०५) इस तरह सभी चलते—चलते, थे हंसदीप में पहुँच गये। थी उन्हें प्रतीक्षा भामंडल की, अत: वहीं पर ठहर गये।। शत्रू की सेना निकट देख, रावण भी उठकर खड़े हुए। बुलवाया सब राजाओं को, रण चलने के आदेश दिये।। (१०६) चलने को उद्यत रावण को, आ गये विभीषण समझाने। पर जिद में…