44. सिद्ध परमेष्ठी के आठ गुण
सिद्ध परमेष्ठी के आठ गुण सम्मत्तणाणदंसण वीरिय सुहुमं तहेव अवगहणं। अगुरुलहुमव्वावाहं अट्ठगुणा होंति सिद्धाणं।। सिद्धों के आठ कर्मो के क्षय हो जाने से आठ गुण प्रगट हो जाते हैं। मोहनीय कर्म के क्षय से सम्यक्त्व, ज्ञानावरण के क्षय से केवलज्ञान, दर्शनावरण के क्षय से केवल दर्शन, अन्तरायकर्म के क्षय से अनन्तवीर्य, नामकर्म के अभाव से…