8.3 पडिक्कमामि भंते !
पडिक्कमामि भंते ! अमृतवर्षिणी टीका— श्रीगौतमस्वामी कहते हैं—‘‘एक्के भावे अणाचारे।’’ एक भाव अनाचार है। आचार का अर्थ विरति—व्रतों को ग्रहण करना है, उसका अभाव ‘अनाचार’ है। यह अनाचार चतुर्गति के सभी प्राणियों में स्वभाव से साधारणरूप से पाया ही जाता है। अथवा व्रतों का भंग हो जाना अनाचार है। ‘वेसु रायदोसेसु’। दो राग—द्वेष परिणाम हैं,…