ग्यारह प्रतिमा सम्यग्दर्शन, अणुव्रत, गुणव्रत, शिक्षाव्रत और सल्लेखना इन गुणों को धारण करने वाले श्रावक के ग्यारह पद या स्थान होते हैं। इन्हें प्रतिमा कहते हैं। इन ग्यारह प्रतिमाओं में से किसी भी प्रतिमा में अपने पद के अनुसार चारित्र होते हुए भी पूर्व-पूर्व की प्रतिमा का चारित्र होना बहुत जरूरी है। श्रावक अपने संयम…
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची 1- समयसार कलष 2- तत्वार्थ सूत्र 3- प्रवचनसार 4- तत्वार्थसार 5- बृह्दद्रव्यसंग्रह टीका 6- कार्तिकेयानुपे्रक्षा 7- श्रीमद् भागवत 8- पद्मनन्दिपचविंषतिका 9- कातन्त्र व्याकरण 10- अश्ट सहस्री 11- तत्वार्थ राजवार्तिक 12- भर्तृहरि नीतिषतक 13- आर्यिका रत्न ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रंथ 14- ‘शट्खण्डागम-सिद्धान्त चिन्तामणि टीका (आ० ज्ञानमती कृत) 15- षिलालेख संग्रह 16- तीर्थंकर महावीर…
मुक्ति के कारण ‘‘सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्ग:।’’ सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र इन तीनों की एकता मोक्ष की प्राप्ति का उपाय है अर्थात् उपर्युक्त मिथ्यात्व आदि के प्रतिपक्षी, ये सम्यक्त्व आदि कारण कर्मबंध से छुटाकर जीव को मोक्ष प्राप्त कराने वाले हैं। सम्यक्त्व लब्धि-लब्धिसार ग्रंथ में सम्यक्त्व लब्धि और चारित्र लब्धि का बहुत ही विस्तृत विवेचन है, उसी…
भव्य मार्गणासार जिन जीवों की अनंतचतुष्टय रूप सिद्धि होने वाली हो अथवा जो उसकी प्राप्ति के योग्य हों उनको भव्य कहते हैं। जिनमें इन दोनों में से कोई लक्षण घटित न हो उनको अभव्य कहते हैं अर्थात् कितने ही भव्य ऐेसे हैं जो मुक्ति प्राप्ति के योग्य हैं परन्तु कभी भी मुक्त न होंगे। जैसे—विधवा…
पांच स्थावर के चार-चार भेदों में दो-दो निर्जीव हैं। पृथिव्यप्तेजोवायुवनस्पतयः स्थावराः।।१३।। पृथिवी च आपश्च तेजश्च वायुश्च वनस्पतिश्च पृथिव्यप्तेजोवायुवनस्पतयः। तिष्ठन्ति इत्येवंशीलाः स्थावराः। एते पृथिव्यादय एकेन्द्रियजीवविशेषाःस्थावरनामकर्मो-दयात् स्थावराःकथ्यन्ते। ते तु प्रत्येक चतुर्विधाः-पृथिवी,पृथिवीकायः, पृथिवीकायिकः पृथिवीजीवः।आपः,अप्कायः,अप्कायिकः, अप्जीवः। तेजः, तेज:कायः, तेजकायिकाः तेजोजीवः। वायुः, वायुकायः, वायुकायिकाः, वायुजीवः। वनस्पतिः, वनस्पतिकायः, वनस्पतिकायिकः,वनस्पतिजीव इति। तत्र अध्वादिस्थिता धूलिः पृथिवी। इष्टकादिः पृथ्विीकायः। पृथ्वीकायिक-जीवपरिहृतत्वात् इष्टकादिः पृथ्वीकायःकथ्यते मृतमनुष्यादिकायवत् ।…
ढाई द्वीप में भोगभूमियाँ कितनी हैं ? एक चर्चा- वार्ता चन्दनामती – पूज्य माताजी! इस ज्ञानवार्ता में मैं आपसे तेरहद्वीपों के अंदर होने वाली भोगभूमियों के बारे में कुछ प्रश्न करना चाहती हूँ। श्री ज्ञानमती माताजी – पूछो, भोगभूमि के बारे में तुम्हारे क्या प्रश्न हैं? चन्दनामती – सबसे पहले यह बतलाने की कृपा करें कि…