बलदेव बलभद्र एवं श्रीकृष्ण नारायण भगवान नमिनाथ के बाद शौरीपुर के राजा अंधकवृष्टि की सुभद्रा महारानी के दश पुत्र हुए, जिनके नाम- (१) समुद्रविजय (२) अक्षोभ्य (३) स्तिमितसागर (४) हिमवान (५) विजय (६) अचल (७) धारण (८) पूरण (९) अभिचन्द्र और १०. वसुदेव तथा सुभद्रा महारानी के दो पुत्रियाँ थीं, जिनके कुंती और माद्री नाम…
श्री रयणसार सरस काव्य पद्यावली भगवान महावीर के पश्चात् उनके प्रथम गणधर गौतम स्वामी ने दिव्यध्वनि को ग्रहण कर उसे ग्रंथरूप में निबद्ध किया। उसी श्रुत परम्परा को अनेक आचार्यों ने आगे बढ़ाया। उनमें आचार्य कुन्दकुन्द स्वामी का नाम ग्रंथ रचना में सर्वाधिक प्रचलित है। वे श्रमणसंस्कृति के उन्नायक कहे गये हैं। उनके अनेक नाम…
जो प्राणी विनयपूर्वक श्रुत/शास्त्र को पढ़ता है वह पढ़ा गया श्रुत आदि प्रमाद से कभी विस्मृत भी हो जावे, तो अगले भव में वह कभी न कभी उपलब्ध हो जाता है तथा केवलज्ञान की प्राप्त कराने में भी वह स्वाध्याय कारण बन जाता है।
जैन सिद्धान्त में चार अनुयोग माने गये हैं-प्रथमानुयोग, करणानुयोग, चरणानुयोग और द्रव्यानुयोग।इनका क्रमपूर्वक अध्ययन करना ही स्वाध्याय कहलाता है।
आहार मार्गणा ( गोम्मटसार जीवकाण्ड के आधार से ) (उन्नीसवाँ अधिकार) आहार का स्वरूप उदयावण्णसरीरोदयेण तद्देहवयणचित्ताणं। णोकम्मवग्गणाणं, गहणं आहारयं णाम।।१६२।। उदयापन्नशरीरोदयेन तद्देहवचनचित्तानाम्। नोकर्मवर्गणानां ग्रहणमाहारकं नाम।।१६२।। अर्थ—शरीरनामा नामकर्म के उदय से देह—औदारिक, वैक्रियक, आहारक इनमें से यथासंभव किसी भी शरीर तथा वचन और द्रव्य मनरूप बनने के योग्य नोकर्मवर्गणाओं का जो ग्रहण होता है उसको आहार…
समयसार का सार (भूमिका) समयसार की गाथा संख्या और टीकायें— वर्तमान में इस समयसार ग्रन्थ पर दो टीकायें उपलब्ध हैं। एक श्री अमृतचंद्रसूरि की, दूसरी श्री जयसेनाचार्य की । पहली टीका का नाम आत्मख्याति है और दूसरी का नाम ‘‘तात्पर्यवृत्ति’’ है। श्रीअमृतचंद्रसूरि ने जीवाजीवाधिकार को सम्मिलितरूप से लिया है। पुन: कर्तृकर्म अधिकार, पुण्यपाप अधिकार, आस्रव…
संख्या का मान व्यवहार के २४ अंक प्रमाण है गणितसार संग्रह में २४ अंक प्रमाण माना है। देखिए— एवं तु प्रथमस्थानं द्वितीयं दशसंज्ञिकम्। तृतीयं शतमित्याहुः चतुर्थं तु सहस्रकम्गणितसार ।।६३।।पञ्चमं दशसाहस्रं षष्ठं स्याल्लक्षमेव च। सप्तमं दशलक्षं तु अष्टमं कोटिरुच्यते।।६४।।नवमं दशकोट्यस्तु दशमं शतकोटयः। अर्बुदं रुद्रसंयुत्तं न्यर्बुदं द्वादशं भवेत्।।६५।।खर्वं त्रयोदशस्थानं महाखर्वं चतुर्दशम्। पद्मं पञ्चदशं चैव महापद्मं तु षोडशम्।।६६।।क्षोणी…
साधु के २८ मूलगुण भिन्न प्रकार से हैं साधु परमेष्ठी के २८ गुण-दस सम्यक्त्चगुण, मत्यादि पाँच ज्ञानगुण अौर तेरह प्रकार का चारित्र, ये साधु के २८ गुण माने गये हैं। इनमें से सम्यक्त्च के दस गुण इस प्रकार हैं :- १. आज्ञासम्यक्त्व, २. मार्गसम्यक्त्व, ३. उपदेशसम्यक्त्व, ४. सूत्रसम्यक्त्व, ५. बीजसम्यक्त्व, ६. संक्षेपसम्यक्त्व, ७. विस्तारसम्यक्त्व, ८….