जैनागम में वर्णित हवन विधि आवश्यक क्यों चन्दनामती -पूज्य माताजी! वंदामि, मैं आपसे श्रावकों द्वारा पूजा-विधानों के अंत में की जाने वाली हवन विधि के बारे में कुछ समयोचित बातें पूछना चाहती हूँ। श्री ज्ञानमती माताजी-पूछो। चन्दनामती -पूजा विधानों के समापन में एवं पंचकल्याणक प्रतिष्ठाओं में अग्निकुण्डों में हवन क्यों किया जाता है? श्री ज्ञानमती…
जब धर्म का ह्रास होने लगता है तब तीर्थंकर भगवान जन्म लेते हैं। अनेकेऽत्र ततोऽतीते काले रत्नालयोपमे। नाभेययुगविच्छेदे जाते नष्टसमुत्सवे।।२०४।। अवतीर्य दिवो मूध्र्नःकर्तुं कृतयुगं पुनः। उद्भूतोऽस्मि हिताधायी जगतामजितो जिनः।।२०५।। आचाराणां विघातेन कुदृष्टीनां च संपदा। धर्मं ग्लानिपरिप्राप्तमुच्छ्रयन्ते जिनोत्तमाः।।२०६।। ते तं प्राप्य पुनर्धर्मं जीवा बान्धवमुत्तमम्। प्रपद्यन्ते पुनर्मार्गं सिद्धस्थानाभिगामिनः।।२०७।। तदनन्तर बहुत काल व्यतीत हो जाने पर जब…
पुण्य की महिमा का वर्णन चक्रायुधोऽयमरिचक्रभयंकरश्रीराक्रम्य सिन्धुमतिभीषणनक्रचक्रम्। चव्रे वशे सुरमवश्यमनन्यवश्यं पुण्यात् परं न हि वशीकरणं जगत्याम्।।२१६।। शत्रुओं के समूह के लिए जिनकी सम्पत्ति बहुत ही भयंकर है ऐसे चक्रवर्ती भरत ने अत्यन्त भयंकर मगरमच्छों के समूह से भरे हुए समुद्र का उल्लंघन कर अन्य किसी के वश न होने योग्य मागध देव को निश्चितरूप से…
जयसेन चक्रवर्ती भगवान नमिनाथ के तीर्थ में जयसेन नाम के ग्यारहवें चक्रवर्ती हुए हैं। इसी जम्बूद्वीप के उत्तर में ऐरावत क्षेत्र में श्रीपुर नगर के राजा ‘वसुंधर’ राज्य संचालन कर रहे थे। किसी समय रानी पद्मावती के मरण से दु:खी हुए मनोहर नाम के वन में वरचर्य (वरधर्म) नाम के केवली भगवान की गंधकुटी में…
श्री जम्बूस्वामी चरित्र प्रस्तुति—गणिनीप्रमुख आर्यिका ज्ञानमती’ (संस्कृत भाषा को सरलतया समझने और उसके रसास्वादन के लिए अतीव सरल संस्कृत में यह कथानक दिया जा रहा है और साथ में इसका हिन्दी रूपांतर भी प्रस्तुत किया गया है)- संस्कृत भाषा में- अस्ति आर्यखंडे मगधदेशस्य एकस्मिन् भागे राजगृही नाम नगरी। यत्र महाराज: श्रेणिको प्रजा: अनुशास्ति स्म, तस्य…
वक्ता के लक्षण ऊपर कही हुई कथा को कहने वाला आचार्य वही पुरुष हो सकता है, जो सदाचारी हो, स्थिरबुद्धि हो, इन्द्रियों को वश में करने वाला हो, जिनकी सब इन्द्रियाँ समर्थ हों, जिसके अंगोपांग सुन्दर हों, जिसके वचन स्पष्ट परिमार्जित और सबको प्रिय लगने वाले हों, जिसका आशय जिनेन्द्रमतरूपी समुद्र के जल से धुला…