पुरुष की ७२ कलाओं के नाम पुरुष की बहत्तर कलाएँ कलानिधि नाम की व्याख्या करते हुए श्रुतसागर सूरि ने पुरुष की बहत्तर कलाओं के नाम इस प्रकार बतलाये हैं :— १. गीतकला, २. वाद्यकला, ३. बुद्धिकला ४. शौचकला, ५. नृत्यकला, ६. वाच्यकला, ७. विचारकला, ८. मंत्रकला, ९. वास्तुकला, १०. विनोदकला, ११. नेपथ्यकला, १२. विलासकला, १३….
द्रव्य और अस्तिकाय इस विधि से ये छह भेद रूप, जो द्रव्य कहे परमागम में। वे जीव अजीवों के प्रभेद, से ही माने जिनशासन में।। इनमें से कालद्रव्य वर्जित, जो पाँच द्रव्य रह जाते हैं। वे ही अर्हंतदेव भाषित, पंचास्तिकाय कहलाते हैं।।२३।। मूल में द्रव्य के जीव और अजीव ये दो ही भेद हैं। इसी…
सोलह स्वर्गों के देवियों की आयु मूलाचार ग्रंथ में देवियों की आयु में दो मत आने से टीकाकार ने बहुत ही सुन्दर समाधान किया है। यथा— सौधर्मादिदेवीनां परमायुषः प्रमाणं प्रतिपादयन्नाह—पंचादी वेिंह जुदा सत्तवीसा य पल्ल देवीणं।तत्तो सत्तुत्तरिया जावदु अरणप्पयं कप्पंमूलाचार (भाग-२ पृ. २६८-२६९ गाथा-११२२-११२३।।।११२२।। पंचादी — पंच आदि पंच आदि पंचपल्योपमानि मूलं, वेहि जुदा—द्वाभ्या युक्तानि…
कथा और कथक के लक्षण कथा और कथक के लक्षण छंद बुद्धिमानों को इस कथारम्भ के पहले ही कथा, वक्ता और श्रोताओं के लक्षण अवश्य ही कहना चाहिए। मोक्ष पुरुषार्थ के उपयोगी होने से धर्म, अर्थ तथा काम का कथन करना कथा कहलाती है। जिसमें धर्म का विशेष निरूपण होता है उसे बुद्धिमान् पुरुष सत्कथा…
दशरथ के पिता राजा अनरण्य ने अपने छोटे पुत्र अनन्तरथ के साथ दीक्षा ली थी दूतात्तत्प्रेषिताज् ज्ञात्वा तद्वृत्तान्तमशेषतः। मासजाते श्रियं न्यस्य नार्यौ दशरथे भृतम्।।१६६।। सकाशेऽभयसेनस्य निग्र्रन्थस्य महात्मनः। राजानन्तरथेनामा प्रवव्राजातिनिः स्पृहः।।१६७।। अनरण्योऽगमन्मोक्षमनन्तस्यन्दनो महीम्। सर्वसङ्गविनिर्मुक्तो विजहार यथोचितम्।।१६८।। अत्यन्तदुस्सहैर्योगी द्वािंवशतिपरीषहै:। न क्षोभितस्ततोऽनन्तवीर्याख्यां स क्षितौ गतः।।१६९।। वपुर्दशरथो लेभे नवयौवनभूषितम्। शैलकूटमिवोत्तुङ्गं नानाकुसुमभूषितम्।।१७०।। दीक्षा धारण करने के पहले उसने राजा अनरण्य…
श्री रामचन्द्रजी ने कुंथलगिरि पर अनेक जिनमंदिर बनवाये तत्र वंशगिरौ राजन् रामेण जगदिन्दुना। निर्मापितानि चैत्यानि जिनेशानां सहस्रशः।।२७।। महावष्टम्भसुस्तम्भा युक्तविस्तारतुङ्गताः। गवाक्षहम्र्यवलभीप्रभृत्याकारशोभिताः।।२८।। सतोरणमहाद्वाराः सशालाः परिखान्विताः। सितचारुपताकाढ्या बृहद्घण्टारवाचिताः।।२९।। मृदङ्गवंशमुरजसंगीतोत्तमनिस्वनाः। झर्झरैरानवै शङ्खभेरीभिश्च महारवाः।।३०।। सततारब्धनिःशेषरम्यवस्तुमहोत्सवाः। विरेजुस्तत्र रामीया जिनप्रासादपङ्क्तयः।।३१।। रेजिरे प्रतिमास्तत्र सर्वलोकनमस्कृताः। पञ्चवर्णा जिनेन्द्राणां सर्वलक्षणभूषिताः।।३२।। उपजातिवृत्तम् एषऽपि तुङ्गः परमो महीध्रः श्रीमन्नितम्बो बहुधानुसानुः। विलम्पतीभिः कुकुभां समूहं…