बंध प्रकरण बंध के भेद प्रभेद पयडिट्ठिअणुभागप्पदेसबंधोत्ति चदुविहो बंधी। उक्कस्समणुक्कस्सं जहण्णमजहण्णगंति पुधं।।३१।। प्रकृतिस्थित्यनुभागप्रदेशबंध इति चतुर्विधो बंध:। उत्कृष्टोनुत्कृष्ट: जघन्योऽजघन्यकं इति प्रथक्।।३१।। अर्थ — १. प्रकृति बंध, २. स्थिति बंध, ३. अनुभाग बंध और ४. प्रदेश बंध इस तरह बंध के चार भेद हैं तथा इनमें भी हर एक बंध के १. उत्कृष्ट २. अनुत्कृष्ट, ३. जघन्य…
श्रावक के ८ मूलगुण श्रावक के ८ मूलगुण होते हैं। इनके अनेक प्रकार हैं— पुरुषार्थसिद्ध्युपाय में श्री अमृतचंदसूरि ने लिखा हैं— मद्यं मांसं क्षौद्रं पञ्चोदुम्बरफलानि यत्नेन।हिंसाव्युपरतिकामैर्मोक्तव्यानि प्रथममेव।।६१।। पुरुषार्थसिद्ध्युपाय पृ. ३०, श्लोक ६१।’ अन्वयार्थौ — (हिंसाव्युपरतिकामैः) हिंसा त्याग करने की कामना वाले पुरुषों को (प्रथममेव) प्रथम ही (यत्नेन) यत्नपूर्वक (मद्यं) शराब, (मांसं) मांस, (क्षौद्रं) शहद और…
शीलव्रतेष्वनतिचार भावना शीलव्रतेष्वनतिचार भावना चरित्रविकल्पेषु शीलव्रतेषु निरवद्या वृत्ति: शीलव्रतेष्वनतिचार:।।३।। अहिंसा आदि व्रत हैं तथा उनके परिपालन के लिये क्रोधादि का वर्जन करना सो शील है। इन व्रतों और शीलों में मन-वचन-काय की निर्दोष प्रवृत्ति करना शीलव्रतेष्वनतिचार भावना है। पाँच महाव्रतों के परिपूर्ण पालन करने के लिए जो उनकी पचीस भावनायें हैं, पाँच समिति और तीन…
श्रावक के बारह व्रत श्री गौतमस्वामी व श्री कुन्दकुन्ददेव के अनुसार १२ व्रत एक सदृश हैं। पंच अणुव्रत सभी में एक समान हैं। तीन गुणव्रत और चार शिक्षाव्रतों में अंतर है। पाक्षिक प्रतिक्रमण में १२ व्रत का वर्णन देखिए— पढमं ताव सुदं मे आउस्संतो! इह खलु समणेण भयवदा महदि-महावीरेण महा-कस्सवेण सव्वण्ह-णाणेण सव्व-लोय-दरसिणा सावयाणं सावियाणं खुड्डयाणं…
भगवान शांतिनाथ अपराजित महामंत्रणमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आइरियाणं।णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्व साहूणं।। अरिहंतों को नमस्कार हो, सिद्धों को नमस्कार हो, आचार्यों को नमस्कार हो, उपाध्यायों को नमस्कार हो और लोक में सर्व साधुओं को नमस्कार हो। इसे पंचनमस्कार मंत्र, महामंत्र और अपराजित मंत्र भी कहते हैं। एसो पंचणमोयारो, सव्वपावप्पणासणो।मंगलाणं च सव्वेसिं, पढमं हवइ…
मंदिर एवं वेदी शुद्धि हेतु घटयात्रा और शुद्धि विधान विधि मंदिर, वेदी तथा कलशों की शुद्धि के लिए तीर्थजल की आवश्यकता होती है। अत: किसी जलाशय पर गाजे-बाजे के साथ जाकर जल लाना चाहिए। इस कार्य के लिए कम से कम ९ और अधिक से अधिक ८१ घटों का भरना बतलाया है। कहीं-कहीं १०८…
वारसणुपेक्खा (श्री कुन्द्कुंदाचार्यकृत) श्री कुंदकुंद आचार्य द्वारा रचित बारसणुपेक्खा नामके ग्रन्थ से यहाँ द्वादश अनुप्रेक्षाओं का वर्णन प्रस्तुत किया जा रहा है । मंगलाचरण और प्रतिज्ञावाक्य णमिऊण सव्वसिद्धे झाणुत्तमखविददीहसंसारे । दस दस दो दो व जिणे दस दो अणुपेहणं बोच्छे ।।१।। जिन्होंने उत्तम ध्यान के द्वारा दीर्घ संसार का नाश कर दिया है ऐसे समस्त…