अभीक्ष्णज्ञानोपयोग भावना सोलह कारण भावना ज्ञानभावनायां नित्ययुक्तता ज्ञानोपयोग:।।४।। जीवादि पदार्थों को प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से जानने वाले मति, श्रुत, अवधि आदि पाँच ज्ञान हैं। इनमें से जो जिनेन्द्र भगवान् के मुखकमल से निकले हुए वचन हैं, उन्हें ही गणधर आदि ऋषियों ने आगम रूप से गूँथा है। उन्हीं की परम्परागत अंश आज भी ग्रंथों…
संवेग भावना सोलह कारण भावना संसार दु:खन्नित्यभीरुता संवेग:।।५।। शारीरिक, मानसिक आदि अनेक प्रकार के दु:ख हैं। इनसे तथा प्रिय वियोग, अप्रिय संयोग और इष्ट के अलाभ आदि रूप सांसारिक दु:खों से नित्य ही भयभीत रहना संवेग है। हमेशा संसार और शरीर के स्वरूप का विचार करते रहने से यह संवेग भाव उत्पन्न होता है। श्री…
श्रावक की षट् आवश्यक क्रियाएँ जो पुरुष देवपूजा, गुरु की उपासना, स्वाध्याय, संयम, तप और दान इन षट्कर्मों के करने में तल्लीन रहता है, जिसका कुल उत्तम है, वह चूली, उखली, चक्की, बुहारी आदि गृहस्थ की नित्य षट् आरंभ क्रियाओं से होने वाले पाप से मुक्त हो जाता है तथा वही उत्तम श्रावक कहलाता है।…
प्ररूपणा एवं गुणस्थान गुणस्थान अथ श्रीनेमिचंद्र सैद्धान्तिक चक्रवर्ती गोम्मटसार ग्रंथ के लिखने के पूर्व निर्विघ्नसमाप्ति, नास्तिकतापरिहार, शिष्टाचार परिपालन और उपकारस्मरण इन चार प्रयोजनों से इष्टदेव को नमस्कार करते हुए इस ग्रंथ में जो कुछ वक्तव्य है उसके ‘सिद्ध’ इत्यादि गाथासूत्र द्वारा कथन करने की प्रतिज्ञा करते हैं- ।।मंगलाचरण।। सिद्धं सुद्धं पणमिय, जिणिंदवरणेमिचंदमकलंकं। गुणरयणभूसणुदयं, जीवस्स परूवणं…
चत्तारि मंगल पाठ अनादि निधन है । चत्तारि मंगलं—अरिहंत मंगलं, सिद्ध मंगलं, साहु मंगलं, केवलि पण्णत्तो धम्मो मंगलं। चत्तारि लोगुत्तमा—अरिहंत लोगुत्तमा, सिद्ध लोगुत्तमा, साहु लोगुत्तमा, केवलिपण्णत्तो धम्मो लोगुत्तमा। चत्तारि सरणं पव्वज्जामि—अरिहंत सरणं पव्वज्जामि, सिद्ध सरणं पव्वज्जामि, साहु सरणं पव्वज्जामि, केवलि पण्णत्तो धम्मो सरणं पव्वज्जामि। ह्रौं शांतिं कुरु कुरु स्वाहा। अनादि सिद्धमंत्र:। (हस्तलिखित वसुनंदि प्रतिष्ठासार संग्रह)…
भवदेवब्राह्मणस्य दीक्षा ग्रहणं (भवदेव ब्राह्मण का दीक्षा ग्रहण) संस्कृत भाषा में- अथ कदाचित् विहरन् सन् ससंघ: श्री सौधर्माचार्यवर्य: भावदेवमुनिना सार्धं तत्रैव वद्र्धमानपुरे आगत:। तदानीं विशुद्धबुद्धिधारी भावदेवमुनि: स्वानुजं भावदेवं स्मरतिस्म, असौ नगरे विख्यातो विषयासक्त: एकांतमतानुयायी स्वहितं नाज्ञासीत्। करुणाद्र्रमना: भावदेवमुनि: तस्य संबोधनार्थं गुरोरनुज्ञां गृहीत्वा संघात् निर्गत्य भवदेवगृहे आगत्याहारं लब्धवान्। अनंतरं धर्मामृतै: परितप्र्य स्वस्थानं प्रति आगच्छत्, भवदेवोऽपि विनयेन्…
चतुर्थ अधिकार सुप्रभ बलभद्र एवं पुरुषोत्तम नारायण भगवान अनंतनाथ के समय में सुप्रभ बलभद्र और पुरुषोत्तम नारायण हुए हैं। इनका संक्षिप्त विवरण सुनाया जा रहा है- इसी जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र के पोदनपुर में राजा वसुषेण राज्य करते थे, उनकी पाँच सौ रानियों में नंदा महारानी राजा को अतीव प्रिय थीं। मलयदेश के राजा चण्डशासन राजा…