16. चौंतीस अतिशय एवं आठ प्रातिहार्य
चौंतीस अतिशय एवं आठ प्रातिहार्य (तिलोयपण्णत्ति ग्रंथ से) चउरंगुलंतराले उवरिं सिंहासणाणि अरहंता। चेट्ठंति गयणमग्गे लोयालोयप्पयासमत्तंडातिलोयपण्णत्ति-चतुर्थ महाधिकार पृ. २६२ से २६५ तक।।। ८९५।। णिस्सेदत्तं णिम्मलगत्तत्तं दुद्धधवलरुहिरत्तं। आदिमसंहडणत्तं समचउरस्संगसंठाणं।।८९६।। अणुवमरूवत्तं णवचंपयवरसुरहिगंधधारित्तं। अट्ठुत्तरवरलक्खणसहस्सधरणं अणंतबलविरियं।। ८९७।। मिदहिदमधुरालाओ साभावियअदिसयं च दसभेदं। एदं तित्थयराणं जम्मग्गहणादिउप्पण्णं।। ८९८।। जोयणसदमज्जादं सुभिक्खदा चउदिसासु णियराणा। णहगमणाणमहिंसा भोयणउवसग्गपरिहीणा।।८९९।। सव्वाहिमुहट्ठियत्तं अच्छायत्तं अपम्हपंदित्तं। विज्जाणं ईसत्तं समणहरोमत्तणं सजीवम्हि।। ९००।। अट्ठरसमहाभासा…