२० – सीता निर्वासन-पुत्र मिलन श्रीरामचन्द्र अपने सिंहासन पर विराजमान हैं। सखियों सहित सीता वहाँ आकर विनय पूर्वक नमस्कार कर यथोचित आसन पर बैठ जाती हैं पुनः निवेदन करती हैं- ‘‘हे नाथ! रात्रि के पिछले प्रहर में आज मैंने दो स्वप्न देखे हैं सो उनका फल आपके श्रीमुख से सुनना चाहती हूँ।’’ ‘‘कहिए प्रिये! वो…
महापुराण प्रवचन-२ श्रीमते सकलज्ञान, साम्राज्य पदमीयुषे। धर्मचक्रभृते भत्र्रे, नम: संसारभीमुषे।। जिनसेन स्वामी ने कहा है-यह युग का आद्य कथानक बताने वाला इतिहास है। सर्वप्रथम भगवान ऋषभदेव ने जहाँ जन्म लेकर दीक्षा ली वह प्रयाग तीर्थ सर्वभाषामय तीर्थ का उद्भव स्थल है। भरत के प्रश्न पर वृषभसेन गणधर ने अनेक उत्तर बताये उसी परम्परा में भगवान…
मोह का नाश कैसे हो ? मोह को नाश करने के लिए कारणभूत जिनेन्द्रदेव का उपदेश है, उस उपदेश को अर्थात् जिनेन्द्रदेव की वाणी को प्राप्त करके भी पुरुषार्थ ही अर्थ क्रियाकारी है। बिना पुरुषार्थ के मोह का नाश नहीं किया जा सकता है- जो मोहरागदोसे णिहणदि उवलब्भ जोण्हमुवदेसं। सो सव्वदुक्खमोक्खं पावदि अचिरेण कालेण१।। ८८।।…