16. भव्यत्व मार्गणा
भव्यत्व मार्गणा (सोलहवाँ अधिकार) भव्य और अभव्य का स्वरूप भविया सिद्धी जेसिं, जीवाणं ते हवंति भवसिद्धा। तव्विवरीयाऽभव्वा, संसारादो ण सिज्झंति।।१४६।। भव्या सिद्धिर्येषां जीवानां ते भवन्ति भवसिद्धा:। तद्विपरीता अभव्या: संसारान्न सिध्यन्ति।।१४६।। अर्थ—जिन जीवों की अनंत चतुष्टयरूप सिद्धि होने वाली हो अथवा जो उसकी प्राप्ति के योग्य हों उनको भवसिद्ध कहते हैं। जिनमें इन दोनों में से…