मान कषाय भगवान आदिनाथ के साथ चार हजार राजाओं ने बिना कुछ समझे-बूझे दिगम्बरी दीक्षा ले ली। भगवान छह महीने तक ध्यान में लीन थे। तब ये सब साधु भूख-प्यास की वेदना से भ्रष्ट हो गये उनमें से एक मरीचि कुमार महामानी था। मानकषाय से उसने अनेकों पाखण्ड मत चलाये। भगवान को केवलज्ञान होने पर…
सम्यग्दर्शन सम्यग्दर्शन सच्चे देव, सच्चे शास्त्र और सच्चे गुरु का श्रद्धान करना सम्यग्दर्शन है। यह आठ अंग से सहित होता है तथा इन अंगों के उल्टे शंकादि आठ दोष, आठ मद, छह अनायतन और तीन मूढ़ता इन पच्चीस दोषों से रहित होता है अथवा छह द्रव्य, पांच अस्तिकाय, सात तत्त्व और नव पदार्थ इनका श्रद्धान…
जीव दया मृगसेन धीवर ने मुनिराज से नियम लिया कि जाल में जो मछली पहले आवेगी, उसे नहीं मारूँगा, उसे काले धागे से बांधकर छोड़ दूँगा। उसी दिन उसके जाल में जो मछली आई, उसे निशान करके नदी में छोड़ दिया। पुन: दिन भर में पाँच बार वही मछली जाल में आई उसने पाँचों ही…
झूठ जिस बात या जिस चीज को जैसा देखा या सुना हो, वैसा ना कहना झूठ है तथा जिन वचनों से धर्म धर्मात्मा या किसी भी प्राणी का घात हो जावे, ऐसे सत्य वचन भी झूठ कहलाते हैं। इस पाप से लोग झूठ दगाबाज कहलाते हैं। पर्वत, नारद और वसु तीनों एक ही गुरु के…
गति के भेद जो एक पर्याय से दूसरी पर्याय में ले जावे वह गति है। गति के चार भेद हैं– नरकगति, तिर्यंचगति, मनुष्यगति और देवगति नरकगति– नामकर्म के उदय से नरक में जन्म लेना नरकगति है। नरक में हर समय मारकाट का दु:ख होता रहता है, सुख का लेश भी नहीं है। तिर्यंचगति– नामकर्म के…