गंध यंत्रम्त था अग्नि मण्डल का नक्शा
नवदेवता अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, साधु, जिनधर्म, जिनागम, जिनचैत्य और चैत्यालय इन्हें नवदेवता कहते हैं। पाँचों परमेष्ठी का लक्षण ऊपर कहा जा चुका है। अरिहंत भगवान के द्वारा कहे गये धर्म को जिनधर्म कहते हैं। इसका मूल जीवदया है। जिनेन्द्र देव द्वारा कहे गये एवं गणधर देव आदि ऋषियों के द्वारा रचे गये शास्त्र को…
स्थावर जीव संसारी जीव के दो भेद हैं-त्रस और स्थावर। एकेन्द्रिय जीव को स्थावर जीव कहते हैं। इन जीवों के केवल शरीर रूप एक स्पर्शन इन्द्रिय ही होती है। स्थावर जीव के पाँच भेद हैं– पृथ्वीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक और वनस्पतिकायिक। पृथ्वीकायिक जीव अर्थात् पृथ्वी ही जिनका शरीर हो, जैसे मिट्टी, पाषाण, अभ्रक, सोना आदि।…
ॐ मंत्र में पंचपरमेष्ठी समाविष्ट हैं ‘ॐ’ प्रणवमंत्र में अरहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और सर्वसाधु ये पांचों परमेष्ठी समाविष्ट हैं। ऐसे ‘ॐ’ के जाप्य से, ध्यान से व पूजा से सर्व मनोरथ सफल हो जाते हैं। ओम् का अर्थ है— अरिहंता असरीरा, आइरिया तह उवज्झाया मुणिणो। पढमक्खरणिप्पण्णो, ओंकारो पंच परमेट्ठी। अर्थ—अरिहंत का प्रथम अक्षर ‘अ,…