25. धर्म का लक्षण
धर्म का लक्षण (अन्तर-विभिन्न ग्रंथों में) रत्नकरण्डश्रावकाचार में धर्म का लक्षण— सद्दृष्टिज्ञानवृत्तानि, धर्म धर्मेश्वरा विदुः। यदीय-प्रत्यनी-कानि, भवन्ति भवपद्धति।।३।। सम्यग्दर्शन औ ज्ञान चरित, ये धर्म नाम से कहलाते। धर्मेश्वर तीर्थंकर गणधर, इनको ही शिवपथ बतलाते।। इनसे उल्टे मिथ्यादर्शन, औ मिथ्याज्ञान चरित्र सभी। भव दु:खों के ही कारण हैं, निंह हो सकते सुख हेतु कभी।।३।। अर्थ —…