चौबीस तीर्थंकरों की सोलह जन्मभूमियों की नामावली महानुभावों,
चौबीस तीर्थंकरों की सोलह जन्मभूमियों की नामावली
चौबीस तीर्थंकरों की सोलह जन्मभूमियों की नामावली
कुल देवता के संदर्भ में प्रस्तुति-आर्यिका चन्दनामती जैन गजट १ अप्रैल २०१३ के अंक में पेज नं. ३ पर श्री एम.सी. जैन, चिकलठाणा (महाराष्ट्र) द्वारा लिखित ‘‘कुल देवताओं की उपासना मिथ्यात्व नहीं, आगम सम्मत है’’ लेख देखा। उस संदर्भ में दिगम्बर जैन आगम ग्रंथों के अनुसार ध्यान देना है- दिगम्बर जैन आगम ग्रंथों में चौबीस…
विशेष उद्बोधन -गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी (१) महामंत्र अनादि है-श्री उमास्वामी का स्तोत्र पाठ चत्तारि मंगल अनादि है-सुधारा पाठ नहीं पढ़ना, यह निर्वाणोत्सव से आया है। (श्वेताम्बरों से) (२) चतुर्थकालीनवाणी-श्री गौतम स्वामी के मुख से निकली है, गीर्वाणी भाषा में। ‘‘जयति भगवान्’’ चैत्यभक्ति। यह संस्कृत में है-प्रमाण है। पं. लालाराम जी शास्त्री के उद्गार आदि।…
जैन सरस्वती-लक्ष्मी की मूर्तियों की परम्परा -गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी एक जिनचैत्यालय में सन् १९७२ में मैंने सरस्वती और लक्ष्मी की मूर्तियाँ देखीं, उनके मस्तक पर भगवान की प्रतिमा थीं। मुझे बहुत ही अच्छा लगा और मैंने ब्र. मोतीचंद से कहा- इनके छोटी-छोटी मूर्तियाँ बनवाओ, इनके मस्तक पर भगवान हैं अत: ये जैन की प्रतीक…
जैनं जयतु शासनं के स्थान पर ‘नमोऽस्तु शासन जयवंत हो’ कहाँ तक उचित है : एक अनुशीलन (गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी से विशेष वार्ता) प्रस्तुति-आर्यिका स्वर्णमती (संघस्थ) आर्यिका स्वर्णमती-पूज्य माताजी! वंदामि, आज एक महत्वपूर्ण विषय पर आपके मार्गदर्शन की आवश्यकता है। आजकल अनेक श्रावक आकर कहते हैं कि आज ‘‘जैन शासन’’ के स्थान पर ‘‘नमोऽस्तु…
तीर्थंकर भगवान जन्म से ही भगवान हैं। (पूज्य गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी से एक विशेष वार्ता) प्रस्तुति-आर्यिका स्वर्णमती (संघस्थ) आ. स्वर्णमती-वंदामि माताजी! मैं आज आपसे कतिपय बिन्दुओं पर उचित मार्गदर्शन प्राप्त करना चाहती हूँ, ताकि वर्तमान विद्वत् वर्ग को भी आगमोक्त जानकारी प्राप्त हो सके। पूज्य ज्ञानमती माताजी-पूछो! क्या पूछना चाहती हो? आ. स्वर्णमती-पूज्य माताजी!…
वर्तमान में दिगम्बर जैन शासन में पंथ परम्परा श्री पूज्यपाद स्वामी का एवं गुणभद्रसूरि आदि अनेक आचार्यों के पंचामृत अभिषेक पाठ संस्कृत में छपे हुए हैं— श्री पूज्यपाद स्वामी नंदिसंघ की पट्टावली में श्रीकुंदकुंद, उमास्वामी, लोहाचार्य, यश:कीर्ति, यशोनंदी इनके बाद देवनन्दि (पूज्यपादस्वामी) को लिया है। एवं विक्रम संवत् २५८ से ३०८ तक, इन्हें आचार्य पट्ट…
आर्यिकाओं के लिए ग्रंथ लेखन और सिद्धांत ग्रंथादि के अध्ययन के प्रमाण (चारित्र चक्रवर्ती प्रथमाचार्य श्री शांतिसागर महाराज की प्रेरणा से ब्र. सुमतिबाई शाह द्वारा षट्खण्डागम ग्रंथ के सभी सूत्रों के अनुवाद ग्रंथ में प्राक््कथन) लगभग ११-१२ वर्ष हुए होंगे जब मैं श्री १०८ परमपूज्य आचार्य शांतिसागरजी महाराज के दर्शनार्थ बारामती गई थी तब उनके…
प्रतिष्ठा के विषय में कतिपय विचार बिन्दु —गणिनी ज्ञानमती माताजी (बीसवीं सदी के प्रथमाचार्य चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज के प्रथम शिष्य एवं प्रथम पट्टाचार्य श्री वीरसागर जी महाराज की आज्ञानुसार एवं उनके शिष्य प्रतिष्ठाचार्य ब्र. सूरजमल जी के विधि-विधान अनुष्ठान अनुसार) (१) प्रतिष्ठाग्रंथ एक किन्हीं का विरचित ही लेना चाहिए। संकलित-वर्तमान साधु…
ज्योतिर्वासी विमानों का स्वरूप एवं प्रमाण-माप (त्रिलोकसार ग्रंथ से) इदानीं ज्योतिर्विमानस्वरूपं निरूपयति— उत्ताणट्ठियगोलकदलसरिसा सव्वजोइसविमाणा। उविंर सुरनयराणि य जिणभवणजुदाणि रम्माणि।।३३६।। जब ज्योतिर्विमानों का स्वरूप-निरूपण करते हैं— गाथार्थ—सर्व ज्योतिर्विमान अर्धगोले के सदृश ऊपर को अर्थात् ऊर्ध्व- मुखरूप से स्थित हैं तथा इन विमानों के ऊपर ज्योतिषी देवों की जिनचैत्यालयों से युक्त रमणीक नगरियाँ हैं।।३३६।। विशेषार्थ—जिस प्रकार एक…