16. पंचकल्याणक
पंचकल्याणक कोई भी श्रावक या मुनि दर्शनविशुद्धि आदि सोलह कारण भावनाओं को भाते हुए केवली भगवान या श्रुतकेवली के पादमूल में तीर्थंकर नामक कर्म प्रकृति के बंध कर लेते हैं। आयु पूर्ण होने पर मरकर स्वर्ग में देव हो जाते हैं। यदि किसी ने नरक की आयु बाँध ली है, फिर सम्यग्दृष्टि होकर तीर्थंकर प्रकृति…