02.2 सुख—दु:ख प्रदाता वेदनीय, कर्मों का राजा मोहनीय
सुख—दु:ख प्रदाता वेदनीय, कर्मों का राजा मोहनीय कर्म उसे कहते हैं, जो आत्मा का असली स्वभाव प्रगट नहीं होने दे। जैसे-बहुत सी धूल, मिट्टी उड़कर सूरज की रोशनी को ढक लेती है वैसे ही बहुत से पुद्गल परमाणु (छोटे—छोटे टुकड़े) जो इस आकाश में सब जगह भरे हैं, आत्मा में क्रोधादि कषाय उत्पन्न होने से…