जम्बूद्वीप में जम्बूवृक्ष एवं शाल्मली वृक्ष की परिवार वृक्षों सहित संख्या
“…जम्बूद्वीप में जम्बूवृक्ष एवं शाल्मली वृक्ष की परिवार वृक्षों सहित संख्या…”
“…जम्बूद्वीप में जम्बूवृक्ष एवं शाल्मली वृक्ष की परिवार वृक्षों सहित संख्या…”
जम्बूवृक्ष एवं शाल्मली वृक्षों पर जिनमंदिर……. जम्बूवृक्ष और शाल्मली वृक्ष का वर्णन एक सा ही है। विशेषता इतनी ही है कि शाल्मलीवृक्ष की दक्षिण शाखा पर जिनमन्दिर है और शेष तीन शाखाओं पर गरुड़पति वेणु और वेणुधारी देवों के आवास हैें तथा शाल्मली वृक्ष के परिवार वृक्षों पर वेणुधारी देवों के परिवारों के आवास हैं।…
जम्बूद्वीप में शाल्मलीवृक्ष पर जिनमंदिर …. (जंबूद्वीपपण्णत्ती ग्रंथ से१) एयं च सयसहस्सा चालीससहस्स होंति णिद्दिट्ठा। एयं च सयं णेया सोलस कमलाण परिसंखा।।१२६।। विक्खंभुच्छेहादी पउमाणं दुगुणदुगुणवड्ढी दु। हिमवंतादो णेया जाव दु णिसहो गिरिंदो य।।१२७।। जंबूदुमेसु एवं परिसंखा होंति जंबुगेहाणं। णवरि विसेसो जाणे चत्तारिदुमाहिया जंबू।।१२८।। जंबूदुमाहिवस्स दु चत्तारि हवंति तस्स महिसीओ। चत्तारि जंबुगेहा देवीणं होंति णिद्दिट्ठा।।१२९।। एदेण…
जम्बूद्वीप में जम्बूवृक्ष पर जिनमंदिर (त्रिलोकसार ग्रंथ से१) णीलसमीवे सीदापुव्वतडे मंदराचलीसाणे। उत्तरकुरुम्हि जंबूथली सपंचसयतलवासा।।६३९।। नीलसमीपे सीतापूर्वतटे मन्दराचलैशान्यां। उत्तरकुरौ जम्बूस्थली सपञ्चशततलव्यासा।।६३९।। णील । नीलगिरे: समीपे सीतानद्या: पूर्वतटे मन्दराचलस्यैशान्यां दिशि उत्तरकुरौ पञ्चशतयोजनतलव्यासा जम्बूवृक्षस्थल्यस्ति ।।६३९।। अंते दलबाहल्ला मज्झे अट्ठुदय वट्ट हेममया। मज्झे थलिस्स पीठीमुदयतियं अट्ठबारचऊ।।६४०।। अन्ते दलवाहल्या मध्ये अष्टोदया वृत्ता हेममया। मध्ये स्थल्या: पीठमुदयतियं अष्टद्वादशचतु:।।६४०।। अंते । सा…
मंगलाचरण जंबूवृक्षादिशाखासु, परिवारद्रुमेष्वपि। जिनालया जिनार्चाश्च, तांस्ता नौमि शिवाप्तये।।१।। शंभु छंद जंबूवृक्षादिक दश तरु हैं, इनके परिवार वृक्ष भी हैं। छत्तीस लाख तेतालिस सहस, एक सौ बीस सर्व तरु हैं।। दशतरु में अकृत्रिम मंदिर, परिवारवृक्ष में देवभवन। इस सब में जिनगृह जिनप्रतिमा, इन सबको मैं नित करूँ नमन।।२।। जंबूद्वीप में बीचों बीच में सुदर्शनमेरु पर्वत है।…
जम्बूवृक्ष शाल्मलीवृक्ष जिनालय वन्दना… गीताछन्द गिरि मेरु के उत्तर दिशी उत्तरकुरु शोभे अहा। उसमें सुदिक् ईशान के जंबूतरू राजे महा।। दक्षिण दिशा में देवकुरु नैऋत्य कोण सुहावनी। तरु शाल्मलि शुभरत्नमय, सुन्दर दिखे शाखाघनी।।१।। —सोरठा— तरु की शाखा मांहि, रत्नमयी जिनबिंब हैं। नमूं नमू तिहुंकाल, भक्ति भाव से मैं सदा।।१।। —नरेन्द्र छंद— जंबूतरु का स्वर्णिम स्थल,…
भद्रशालवन के जिनमन्दिर (सिद्धान्तसार दीपक से) अथ मेरोश्चतुर्दिक्षु भद्रशालवनस्थितान् । वर्णयामि मुदोत्कृष्टांश्चतुरः श्रीजिनालयान्।।६।। अद्रेःपूर्वादिशाभागे योजनैकशतायतः। पञ्चाशद् विस्तृतस्तुङ्गः पञ्चसप्ततियोजनैः।।७।। कोशद्वयावगाहश्च विचित्रमणिचित्रितः। अद्भुतः स्याज्जिनागारस्त्रैलोक्यतिलकाह्वयः।।८।। अस्य पूर्वप्रदेशेऽस्ति चोत्तरे दक्षिणे महत् । एवैâकमूर्जितं द्वारं रत्नहेममयं परम् ।।९।। राजते नितरां द्वारं तयोः पूर्वस्थमादिमम्। अष्टयोजनविस्तीर्णं तुङ्गं षोडशयोजनैः।।१०।। दक्षिणोत्तरदिग्भागस्थे द्वे द्वारे परे शुभे। भातोऽष्टयोजनोत्तुंङ्गे चतुर्योजन विस्तरे।।११।। भवनस्यास्य चाभ्यन्तरे पूर्वे विस्फुरन्त्यलम् । विचित्रामणिमालाश्चाष्टसहस्राणिलम्बिताः।।१२।।…
“…मेरु के जिनमंदिर…” (लोकविभाग से) दैर्घ्य योजनपञ्चाशद्विस्तारस्तस्य चार्धकम् । सप्तिंत्रशद्द्विभागश्च चैत्यस्योच्छ्रय इष्यते।।२९०।। ३७ । १/२। चतुर्योजनविस्तारं द्वारमष्टोच्छ्रयं पुनः। तनुद्वारे च तस्यार्धमाने क्रोशावगाढकम् ।।२९१।। सौमनसेषुकारेषु मानुषोत्तरकुण्डले। वक्षारकुलशैलेषु रुचकाद्रौ च मञ्जुले।।२९२।। त्रिकम्अष्टौ दीर्घो द्विविस्तारश्चत्वारि च समुच्छ्रितः। गव्यूतिमवगाढश्च देवच्छन्दो मनोहरः।।२९३।। रत्नस्तम्भधृतश्चारुसूर्यादिमिथुनोज्ज्वलः । नानापक्षिमृगाणां च युग्मैर्नित्यमलंकृतः।।२९४।। अष्टोत्तरशतं गर्भगृहाणि जिनमन्दिरे। तत्र स्फटिकरत्नोद्घपीठाणि रुचिराणि तु।।२९५।। अष्टोत्तरशतं तत्र पर्यंज्रसनमाश्रिताः। जिनार्चा रत्नमय्यः स्युर्धनुः…
मन्दरपर्वत के जिनमंदिर (जंबूद्वीपपण्णत्ती से) णमिऊण सुपासजिणं सुरिंदवइसंथुवं विगयमोहं । मंदरजिणवरभवणं जहाकमं तं परूवेमि ।।१।। संखिंदुकुंदधवलो मणिगणकरजालखदियतिमिरोहो। जिणइंदपवरभवणो तिहुयणतिलओ त्ति णामेण।।२।। पण्णत्तरिउच्छेहो पण्णासायाम तह य विक्ख्ांभो । पुण्ंिणदुमंडलणिभो गंधकुडी दिव्वपासादे।।३।। सोलसजोयणतुंगा अट्ठेव य वित्थढा समुद्दिट्ठा । वित्थारसमपवेसा तस्स दु दाराण परिसंखा ।।४।। मंदरगिरिपढमवणे चत्तारि हवंति चदुसु वि दिसासु। जिणइंदांणं भवणा अणाइणिहणा समुद्दिट्ठा ।।५।। जोयणसयआयामा तदद्धवित्थार…
भवनवासी देवों के भवनों में चैत्यवृक्ष एवं जिनमन्दिर…. तेसिं चउसु दिसासुं जिणदिट्ठपमाणजोयणे गंता। मज्झम्मि दिव्ववेदी पुह पुह वेट्ठेदि एक्केक्का।।२८।। दो कोसा उच्छेहा वेदीणमकट्टिमाण सव्वाणं । पंचसयाणिं दंडा वासो वररयणछण्णाणं।।२९।। गोउरदारजुदाओ उवरिम्मि जिणिंदगेहसहिदाओ । भवणसुररक्खिदाओ वेदीओ ताओ सोहंति।।३०।। तब्बाहिरे असोयंसत्तच्छदचंंपचूदवण पुण्णा । णियणाणातरुजुत्ता चेट्ठंति चेत्ततरूसहिदा।।३१।। चेत्तदुमत्थलरूंदं दोण्णि सया जोयणाणि पण्णासा। चत्तारो मज्झम्मि य अंते कोसद्धमुच्छेहो।।३२।। छद्दोभूमुहरूंदा…