धर्म, अधर्म, आकाश एवं काल द्रव्य २.१ धर्म द्रव्य (Medium of Motion)- जीव व पुद्गल दोनों द्रव्य क्रियाशील हैं, हलन-चलन करते हैं और एक स्थान से दूसरे स्थान को जाते हैं। यदि कोई द्रव्य हलन-चलन करता है या एक स्थान से दूसरे स्थान को जाता है, तो इस हेतु का कोई माध्यम होना चाहिए। यह…
पुद्गल द्रव्य १.१ अजीव द्रव्य (Non-soul Reality)- जिसमें चेतना नहीं हो अर्थात् जिसमें जानने, देखने की शक्ति नहीं हो, वह अजीव द्रव्य है। इसमें कोई प्राण नहीं होते हैं। यद्यपि अजीव द्रव्यों में देखने व जानने की शक्ति नहीं होती है, मगर इसका यह अर्थ नहीं है कि उनमें अन्य कोई गुण या शक्ति नहीं…
जीव के नौ अधिकार ५.१ सिद्धान्तचक्रवर्ती आचार्य श्री नेमिचन्द्र द्वारा रचित द्रव्यसंग्रह में वर्णित जीव के नौ अधिकारों का पृथक्-पृथक् निरूपण किया जा रहा है- उनमें से सर्वप्रथम जीव का लक्षण बताते हैं- तिक्काले चदुपाणा, इंदिय बलमाउ आणपाणो य। ववहारा सो जीवो, णिच्चयणयदो दु चेदणाजस्स।।३।। जिसके व्यवहार नयापेक्षा, तीनों कालों में चार प्राण। इन्द्रिय बल…
विभिन्न दर्शनों के अनुसार जीव का स्वरूप ४.१ इस दृश्य जगत् में जब से मानव ने आँखे खोलीं, तभी से ‘आत्मतत्त्व’ को जानने की इच्छा की प्रक्रिया शुरू हुई। इसी आत्मतत्त्व को जैनदर्शन ‘जीव’ के रूप में, सांख्य दर्शन पुरुष के रूप में और अन्य दर्शन आत्मा के रूप में अभिहित करते हैं। जीवविचार अन्य…
गतियों की अपेक्षा व अन्य अपेक्षा से जीवों के भेद 3.1 जीवों के भेद (Kinds of Living-beings)- गतियों की अपेक्षा जीवों के ४ भेद हैं-नारकी, तिर्यंच, मनुष्य और देव। यहां इनका संक्षिप्त विवरण दिया जा रहा है। १. नारकी- नरक में रहने वाले जीव नारकी हैं। ये हुण्डक संस्थान वाले, नपुंसक और पंचेन्द्रिय होते हैं।…
जीव द्रव्य, इन्द्रियों की अपेक्षा भेद २.१ जीव (Jeev or Soul)- जिसमें चेतना गुण है, वह जीव है। जीव का असाधारण लक्षण चेतना है और वह चेतना जानने व देखने रूप है अर्थात् जो देखता है और जानता है, वह जीव है। ज्ञान-दर्शन जीव का गुण या स्वभाव है। कोई जीव बिना ज्ञान के नहीं…