आस्रव व बंध तत्त्व २.१ आस्रव तत्त्व (Asrava Tattva)- आत्मा में कर्मों के आने को आस्रव तत्त्व कहते हैं। जैसे नदी में नाव चलते समय किसी छिद्र में से पानी का नाव में आना। इसी प्रकार मिथ्यादर्शन, राग, द्वेष आदि भावों के कारण आत्मप्रदेशों में हलन चलन होने से कार्मण पुद्गल वर्गणा आत्मा में आती…
तत्त्व का स्वरूप एवं भेद १.१ तत्त्व का स्वरूप (Nature of Real)- मनुष्य के जीवन में जैसे-जैसे समझ विकसित होती जाती है वह जगत् और जीवन के प्रति चिंतनशील होता जाता है। उसके मन में तत्संबंधी अनेक जिज्ञासाएं उभरने लगती हैं। यथा- १. यह जो दृश्य जगत् है वस्तुत: वह क्या है ?२. जीवन में…
विदेशों में जैनधर्म ५.१ विदेशों में जैनधर्म एवं समाज (Jain Religion and Society in Foreign Countries)- अमेरिका, फिनलैण्ड, सोवियत गणराज्य, चीन एवं मंगोलिया, तिब्बत, जापान, ईरान, तुर्किस्तान, इटली, एबीसिनिया, इथोपिया, अफगानिस्तान, नेपाल, पाकिस्तान आदि विभिन्न देशों में किसी न किसी रूप में वर्तमानकाल में जैनधर्म के सिद्धान्तों का पालन देखा जा सकता है। उनकी संस्कृति…
प्रमुख जैन तीर्थक्षेत्र ४.१ तीर्थ शब्द की व्याख्या (Definition of The Word ‘Teerth’)- तीर्थ शब्द की व्याख्या करते हुए जैनाचार्यों ने लिखा है- ‘‘तीर्यते संसार सागरो येनासौ तीर्थः’’ अर्थात् जिसके द्वारा संसाररूपी महासमुद्र को तिरा जावे.पार किया जावे उसे तीर्थ कहा जाता है। तीर्थ के भेद (Types of Teerth)- उस तीर्थ के प्रथमतः दो भेद…
जैन पर्व ३.१ सोलहकारण पर्व (Solahkaran Parva)- चैत्र, भादों तथा माघ महीनों में पूरे ३० दिन तक यह पर्व मनाया जाता है और सोलहकारण की पूजा तथा व्रत किये जाते हैं। यह अनादिनिधन पर्व है, जिसमें जैनधर्म में बतलाई गई दर्शनविशुद्धि, विनयसम्पन्नता, शीलव्रतेष्वनतिचार, अभीक्ष्णज्ञानोपयोग, संवेग, शक्तितस्त्याग, शक्तितस्तप आदि सोलह प्रकार की तीर्थंकर प्रकृति का बंध…