चत्तारि मंगल में पाठ भेद (१) प्राचीन पाठ— चत्तारि मंगलं – अरिहंत मंगलं, सिद्ध मंगलं, साहु मंगलं, केवलिपण्णत्तो धम्मो मंगलं। चत्तारि लोगुत्तमा – अरिहंत लोगुत्तमा, सिद्ध लोगुत्तमा, साहु लोगुत्तमा, केवलिपण्णत्तो धम्मो लोगुत्तमा। चत्तारि सरणं पव्वज्जामि – अरिहंत सरणं पव्वज्जामि, सिद्ध सरणं पव्वज्जामि, साहु सरणं पव्वज्जामि, केवलिपण्णत्तो धम्मो सरणं पव्वज्जामि। क्रिया कलाप-पृ. ८९, १४४ (वीर सं….
भवनवासी वायुकुमारदेव (गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी से क्षुल्लक मोतीसागर जी की एक वार्ता) क्षुल्लक मोतीसागर – वंदामि माताजी! श्री ज्ञानमती माताजी – बोधिलाभोऽस्तु! क्षुल्लक मोतीसागर – भवनवासी देवों के दस भेदों में से ५ भेदों का विश्लेषण तो आपसे मैं प्राप्त कर चुका हूँ। अब १०वाँ भेद जो ‘‘वायुकुमार’’ नाम का है उसके बारे…
गृहस्थ धर्म जो स्त्री, पुत्र, धन आदि के मोह से ग्रसित हैं वे सागार या गृहस्थ कहलाते है। वे यदि सर्वत्याग रूप मुनिमार्ग में प्रीति रखने वाले हैं और कारणवश उस पद को ग्रहण नहीं कर पाते हैं तभी वे श्रावक धर्म को ग्रहण करने के अधिकारी होते हैं। अन्यथा यदि मुनि धर्म मेंं उनकी…
नंदिमित्र बलभद्र एवं श्रीदत्त नारायण भगवान मल्लिनाथ के तीर्थ में नंदिमित्र नाम के सातवें बलभद्र एवं श्रीदत्त नाम के सातवें नारायण हुए। इनके तीसरे भव पूर्व का चरित्र लिखा जाता है-अयोध्या के राजा के दो पुत्र थे। ये दोनों पिता को प्रिय नहीं थे अत: राजा ने इन दोनों को छोड़कर अपने छोटे भाई को…
द्रव्य – गुण – पर्यायविषयक विवेचन पू० माता जी ने द्रव्य के लक्षण सत् (उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यात्मक) एवं उनके प्रकट स्वरूप द्रव्य – गुण – पर्याय का विवेचन अति सुन्दर एवं स्पश्ट रूप में करके नियमसार के हार्द को खोल दिया है। विशय विस्तार के भय से यहाँ हम मात्र उनकी कतिपय पक्तियाँ प्रस्तुत करेंगे जिससे उनकी…
वेदमार्गणा (दशम अधिकार) वेद का स्वरूप पुरिसिच्छिसंढवेदोदयेण पुरिसिच्छिसंढओ भावे। णामोदयेण दव्वे, पाएण समा कहिं विसमा।।८३।। पुरुषस्त्रीषण्ढवेदोदयेन पुरुषस्त्रीषण्ढा: भावे। नामोदयेन द्रव्ये प्रायेण समा: क्वचिद् विषमा:।।८३।। अर्थ—पुरुष, स्त्री और नपुंसक वेदकर्म के उदय से भावपुरुष, भावस्त्री, भावनपुंसक होता है और नामकर्म के उदय से द्रव्यपुरुष, द्रव्यस्त्री, द्रव्यनपुंसक होता है। सो यह भाव वेद और द्रव्य वेद प्राय:…