सिद्धपरमेष्ठी का स्तवन
सिद्धपरमेष्ठी का स्तवन -शार्दूलविक्रीडित- सूक्ष्मत्वादणुदर्शिनोऽवधिदृश: पश्यन्ति नो यान्परे यत्संविन्महिमस्थितं त्रिभुवनं १स्वच्छं भमेकं यथा। सिद्धान्नामहमप्रमेयमहसां तेषां लघुर्मानषो मूढात्मा किमु वच्मि तत्र यदि वा भक्त्या महत्या वश:।।१।। अर्थ —परमाणुपर्यन्त सूक्ष्मपदार्थों को देखने वाले भी अवधिज्ञानी पुरुष अत्यंत सूक्ष्म जिन सिद्धों को नहीं देख सकते हैं तथा जिनके ज्ञान की महिमा में ये तीनों लोक निर्मल नक्षत्र के…