कषाय मार्गणा ग्यारहवाँ अधिकार कषाय का स्वरूप सुहदुखसुबहुसस्सं कम्मक्खेत्तं कसेदि जीवस्स। संसारदूरमेरं तेण कसाओ त्ति णं बेंति।।८८।। सुखदु:खसुबहुसस्यं कर्मक्षेत्रं कृषति जीवस्य। संसारदूरमर्यादं तेन कषाय इतीमं ब्रुवन्ति।।८८।। अर्थ —जीव के सुख-दु:ख आदि रूप अनेक प्रकार के धान्य को उत्पन्न करने वाले तथा जिसकी संसार रूप मर्यादा अत्यंत दूर है ऐेसे कर्मरूपी क्षेत्र (खेत) का यह कर्षण…
महापुराण प्रवचन महापुराण प्रवचन श्रीमते सकलज्ञान, साम्राज्य पदमीयुषे। धर्मचक्रभृते भत्र्रे, नम: संसारभीमुषे।। भगवान ऋषभदेव के पूर्व भवों में दशावतारों के मध्य राजा महाबल के प्रथम अवतार में राजा के जन्मदिवस अवसर पर चारों मंत्री-अपने-अपने मतों का प्रदर्शन कर रहे थे। उसमें तीसरे मंत्री संभिन्नमति ने कहा कि सारा जगत इन्द्रजाल के सदृश है इसके बाद…
उत्तरपुराण गंथ में लिखा है कि मोक्षकल्याणक में इन्द्र भगवान के शरीर का संस्कार करेंगे। क्रमात्पावापुरं प्राप्य मनोहरवनान्तरे। बहूनां सरसां मध्ये महामणिशिलातले।।५०९।। स्थित्वा दिनद्वयं वीतविहारो वृद्धनिर्जरः। कृष्णकार्तिकपक्षस्य चतुर्दश्यां निशात्यये।।५१०।। स्वातियोगे तृतीयेद्धशुक्लध्यानपरायणः। कृतत्रियोगसंरोधः समुच्छिन्नक्रियं श्रितः।।५११।। हताघातिचतुष्कःसन्नशरीरो गुणात्मकः। गन्ता मुनिसहस्रेण निर्वाणं सर्ववाञ्छितम्।।५१२। तदेव पुरुषार्थस्य पर्यन्तोऽनन्तसौख्यकृत्। अथ सर्वेऽपि देवेन्द्रा वन्हीन्द्रमुकुटस्रफूत्।।५१३।। हुताशनशिखान्यस्ततद्देहा मोहविद्विषम्। अभ्यच्र्य गन्धमाल्यादिद्रव्र्यैिदव्यैर्यथाविधि।।५१४।। वन्दिष्यन्ते भवातीतमथ्र्यैर्वन्दारवः स्तवैः। वीरनिर्वृत्तिसम्प्राप्तदिन…
युग की आदि में इंद्र ने अयोध्या में सर्वप्रथम पाँच जिनमंदिर बनाये श्रुत्वेति तद्वचो दीनं करुणाप्रेरिताशयः। मनः प्रणिदधावेवं भगवानादिपुरुषः।।१४२।। पूर्वापरविदेहेषु या स्थितिः समवस्थिता। साद्य प्रवत्र्तनीयात्र ततो जीवन्त्यमूः प्रजाः।।१४३।। षट्कर्माणि यथा तत्र यथा वर्णाश्रमस्थितिः। यथा ग्रामगृहादीनां संस्त्यायाश्च पृथग्विधाः।।।१४४।। तथात्राप्युचिता वृत्तिरुपायैरेभिरङ्गिनाम्। नोपायान्तरमस्त्येषां प्राणिनां जीविकां प्रति।।१४५।। कर्मभूरद्य जातेयं व्यतीतौ कल्पभूरुहाम्। ततोऽत्र कर्मभिः षड्भिः प्रजानां जीविकोचिता।।१४६।। इत्याकलय्य तत्क्षेमवृत्त्युपायं क्षणं…
जीवद्रव्य ‘सद्द्रव्यलक्षणम्’ इस सूत्र के अनुसार द्रव्य का लक्षण है ‘सत्’ और सत् का लक्षण है ‘‘उत्पादव्ययध्रौव्ययुत्तं सत्’’ उत्पाद व्यय और धौव्य से सहित वस्तु ही सत् कहलाती है। वस्तु की नवीन पर्याय की उत्पत्ति का नाम उत्पाद है। वस्तु की पहली पर्याय के विनाश को व्यय कहते हैं और दोनों ही अवस्था में द्रव्य…
चतुर्थ अधिकार नंदिषेण बलभद्र एवं पुण्डरीक नारायण भगवान अरनाथ एवं मल्लिनाथ के अन्तराल में नंदिषेण बलभद्र एवं पुण्डरीक नारायण हुए हैं। तीसरे भव पूर्व ये राजपुत्र थे। एक राजपुत्र ने शल्य सहित तपश्चरण करके आयु के अंत में संन्यास विधि से मरण करके प्रथम स्वर्ग में देवपद पाया, वहाँ से चयकर सुभौम चक्रवर्ती के बाद…