12. आचार्यभक्ति भावना
आचार्यभक्ति भावना परहितकर प्रवृत्तेषु (आचार्येषु) भावविशुद्धि युक्तोऽनुराग: भक्ति:।।११।। परहित में प्रवृत्त हुये आचार्यों में भावविशुद्धिपूर्वक अनुराग करना आचार्य भक्ति है।१ आज तक जितने भी जीव मोक्ष गये हैं, जाते हैं व जायेंगे वे सब आचार्यदेव का आश्रय लेकर ही गये हैं। यहाँ तक कि तीर्थंकर भी पूर्व जन्म में दीक्षा गुरु से ही दीक्षा लेते…