08. शक्तितस्तपो भावना
शक्तितस्तपो भावना अनिगूहितवीर्यस्य मार्गाविरोधिकायक्लेशस्तप:।।7।। यह शरीर दु:ख का कारण है, अनित्य है, अपवित्र है, यथेष्ट भोगों के द्वारा इसका पोषण करना युक्त नहीं है। यह अपवित्र होते हुए भी अनेक गुणरूपी रत्नों को संचित करने वाला होने से बहुत ही उपकारी है, ऐसा निश्चित समझकर विषय सुखों की आसक्ति छोड़कर अपने कार्यों में इसे नौकर…