लोभ कषाय नदी के प्रवाह में से लकड़ियाँ इकट्ठी करके लाते हुए एक आदमी को रानी ने देखकर राजा से उसको धन देने के लिए कहा। राजा ने उसे बुलाया तब उसने अपने बैल की जोड़ी के लिए एक बैल मांगा। राजा उसका एक बैल देखने के लिए उसके घर गया तो देखा कि उसे…
सात व्यसन जिस काम को बार-बार करने की आदत पड़ जाती है, उसे व्यसन कहते हैं। यहाँ बुरी आदत को व्यसन कहा है अथवा दु:खों को व्यसन कहते हैं। यहाँ उपचार से दु:खों के कारणों को भी व्यसन कह दिया है। ये व्यसन सात हैं— जुआ खेलन, मांस, मद, वेश्यागमन, शिकार। चोरी, पररमणी रमण, सातों…
पानी के एक बिन्दु में असंख्यात जीव हैं, ऐसा जैनाचार्यों ने कहा है। बिना छने पानी को पीने से उन जीवों का घात होता है और स्वास्थ्य भी बिगड़ता है। वैज्ञानिक लोगों ने भी बिना छने पानी की एक बूंद में ३६४५० जीव बताये हैं, इसलिए सदा पानी छानकर पीना चाहिए। मोटे कपड़े का दोहरा…
एक सियार ने सागरसेन मुनिराज के पास रात्रि भोजन का त्याग कर दिया। एक दिन वह सियार बहुत प्यासा था, बावड़ी में पानी पीने के लिए उतरा। वहाँ अंधेरा दिखने से रात्रि समझकर ऊपर आ गया। ऊपर प्रकाश देखकर फिर नीचे आ गया। नीचे बार-बार अंधेरा देखने से और रात्रि में पानी का त्याग होने…
माया कषाय किसी पर्वत पर गुणनिधि मुनि चार महिने का उपवास कर विराजमान थे। उन ऋद्धिधारी मुनि की देवगण स्तुति कर रहे थे। चातुर्मास समाप्त होने पर वे मुनि आकाश मार्ग से विहार कर गये। इधर मृदुगति नाम के दूसरे मुनि उसी क्षण आहार के लिए गाँव में आ गये। श्रावकों ने इन्हें गुणनिधि…
चौबीस तीर्थंकर स्तुति ऋषभ अजित संभव अभिनंदन, सुमतिनाथ का कर वन्दन। पद्मप्रभ जिन श्री सुपार्श्व प्रभु, चन्द्रप्रभू का करूँ नमन।। सुविधि नामधर पुष्पदन्त, शीतल श्रेयांस जिन सदा नमूँ। वासुपूज्य जिन विमल अनन्त धर्म प्रभु शांन्ति नाथ प्रणमूँ।।१।। जिनवर कुंथु अरह मल्लि प्रभु, मुनिसुव्रत नमि को ध्याऊँ।अरिष्ट नेमि प्रभु श्रीपारस, वर्धमान पद शिर नाऊँ।।इस विध संस्तुत…
दो इन्द्रिय आदि जीवों को त्रस जीव कहते हैं। त्रस के चार भेद है-दो इन्द्रिय, तीन इन्द्रिय, चार इन्द्रिय, पंचेन्द्रिय।जिनके स्पर्शन और रसना ये दो इन्द्रियाँ हैं, वे दो इन्द्रिय जीव हैं। जैसे-लट, केंचुआ, जोंक आदि।जिनके स्पर्शन, रसना, घ्राण ये तीन इन्द्रियाँ हो, वे तीन इन्द्रिय जीव हैं। जैसे-चींटी, खटमल, बिच्छू आदि।जिनके स्पर्शन, रसना, घ्राण…
पाँच अणुव्रत हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील और परिग्रह इन पाँचों पापों के अणु अर्थात् एकदेश त्याग को अणुव्रत कहते हैं। अहिंसा अणुव्रत-मन, वचन, काय और कृत, कारित, अनुमोदना से संकल्पपूर्वक (इरादापूर्वक) किसी त्रस जीव को नहीं मारना अहिंसा अणुव्रत– है। जीव दया का फल चिंतामणि रत्न की तरह है, जो चाहो सो मिलता है। उदाहरण-काशी…