21. तीर्थंकर जन्मभूमि विकास की आवश्यकता
तीर्थंकर जन्मभूमि विकास की आवश्यकता संसार समुद्र से संसारी प्राणियों को पार करने वाले पवित्र स्थल तीर्थ कहे जाते हैं। वे तीर्थ दो प्रकार के होते हैं-द्रव्य तीर्थ और भावतीर्थ। रत्नत्रयस्वरूप भाव-परिणाम भावतीर्थ तथा महापुरुषों की चरणरज से पावन भूमियाँ द्रव्यतीर्थ हैं। उनमें २४ तीर्थंकरों के गर्भ, जन्म, तप, ज्ञानकल्याणक स्थल तीर्थक्षेत्र, मोक्षकल्याणक स्थल सिद्धक्षेत्र…